मद्रास हाई कोर्ट ने कहा: लोग वीआईपी संस्कृति से ‘हाताश’ हो गए हैं, खासतौर पर मंदिरों में, श्रद्धालुओं को होती है परेशानी, जिससे वो दुखी होकर कोसते हैं-

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  • न्यायमूर्ति ने सुनवाई के दौरान कहा कि भगवान अकेले “VIP” हैं।
  • परिवार के सदस्यों के लिए होनी चाहिए लेकिन उनके रिश्तेदारों के लिए नहीं।
  • कुछ लोग विशेष दर्शन के हकदार हैं इसका कोई तर्क नहीं हो सकता।
  • मंदिर परिसरों को बंद करने से श्रद्धालुओं को परेशानी होती है।
  • वीआईपी धार्मिक पाप करता है, जिसे भगवान द्वारा माफ नहीं किया जाएगा

मुदुरै खंडपीठ मद्रास हाई कोर्ट ने बुधवार को कहा कि लोग वीआईपी संस्कृति से ‘हाताश’ हो गए हैं, खासतौर पर मंदिरों में। इसके साथ ही अदालत ने तमिलनाडु के प्रसिद्ध मंदिरों में विशेष दर्शन के संबंध में कई दिशा निर्देश जारी किए।

न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम ने तूतीकोरिन जिले के तिरुचेंदुर स्थित प्रसिद्ध अरुलमिगु सुब्रमण्य स्वामी मंदिर के संबंध में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वीआईपी (अति विशिष्ठ व्यक्ति VERY IMPORTANT PERSON ) प्रवेश उक्त व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्यों के लिए होनी चाहिए लेकिन उनके रिश्तेदारों के लिए नहीं।

सुविधा केवल कुछ विशेष कार्यालयों को

उन्होंने कहा, “कुछ लोग विशेष दर्शन के हकदार हैं इसका कोई तर्क नहीं हो सकता। हालांकि, इस तरह की सुविधा केवल कुछ विशेष कार्यालयों को धारण करने वालों के लिए है न कि व्यक्तिगत हैसियत से। अधिकतर विकसित देशों में राज्य केवल कुछ शीर्ष पदों को धारण करने वालों की रक्षा कर करते हैं, वे संवैधानिक हस्तियां होती हैं बाकी को अपनी सुरक्षा देखनी होती है। इस तरह के विशेषाधिकार नागरिकों की समानता के आड़े नहीं आनी चाहिए।’’

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न्यायमूर्ति ने कहा, ‘‘लोग वीआईपी संस्कृति से हाताश हैं खासतौर पर वीआईपी और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों को विशेष दर्शन कराने के लिए मंदिर परिसरों को बंद करने से जिससे श्रद्धालुओं को परेशानी होती है। लोग वास्तव में इससे दुखी होते हैं और कोसते हैं।’’

कोर्ट ने कहा कि मंदिर प्रशासन का यह कर्तव्य है कि वह आम दर्शनार्थियों को कोई असुविधा हुए वीआईपी (VIP) दर्शन सुनिश्चित करे।

न्यायाधीश ने कहा कि तमिलनाडु सरकार ने पहले ही वीआईपी की सूची अधिसूचित कर दी है और इसका अनुपालन मंदिर प्रशासन द्वारा किया जाना चाहिए।

समानता के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए-

उन्होंने कहा, ‘‘यह स्पष्ट किया जाता है कि वीआपी प्रवेश की वजह से श्रद्धालुओं/आम दर्शनार्थियों के समानता के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं होनी चाहिए। वीआईपी प्रवेश केवल वीआईपी और उसके परिवार तक सीमित होनी चाहिए न कि उनके रिश्तेदारों के लिए।’’ अदालत ने कहा कि वीआईपी उन्हें मुहैया कराए गए सुरक्षा गार्ड के साथ जा सकते हैं लेकिन यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि अन्य कर्मी और विभाग के सदस्यों को वीआईपी के साथ विशेष दर्शन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

माननीय न्यायमूर्ति ने कहा, ‘‘भगवान अकेले वीआईपी हैं। अगर कोई वीआईपी आम श्रद्धालु के लिए असुविधा पैदा करता है तो वह वीआईपी धार्मिक पाप करता है, जिसे भगवान द्वारा माफ नहीं किया जाएगा, इसलिए यह स्पष्ट किया जाता है कि विभिन्न विभागों के लोक सेवक जो वीआईपी के श्रेणी में नहीं आते या अन्य व्यक्ति, श्रद्धालु या दानकर्ता को अलग से कतार बनाकर या वीआईपी के साथ मंदिर में विशेष दर्शन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।’’

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