“एनसीएलटी ने अभिनेता अक्षय कुमार की याचिका खारिज की, ऑपरेशनल डेब्ट मानने से किया इनकार”

एनसीएलएटी: बैलेंस शीट में कर्ज की स्वीकृति से लिमिटेशन अवधि का निर्धारण

राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण, नई दिल्ली: बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार द्वारा क्यू लर्न प्राइवेट लिमिटेड (एक ट्यूटरिंग सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनी) के विरुद्ध दायर आवेदन पर सुनवाई करते हुए, मणि संकरैयाह शनमुगा सुंदरम (न्यायिक सदस्य) और डॉ. संजीव रंजन (तकनीकी सदस्य) की द्विसदस्यीय पीठ ने निर्णय दिया कि दावा किया गया ऋण दिवालियापन एवं दिवालियापन संहिता, 2016 (IBC) की धारा 5(21) के तहत ऑपरेशनल डेब्ट (प्रचालन ऋण) की श्रेणी में नहीं आता है। इस आधार पर न्यायाधिकरण ने आवेदन को खारिज कर दिया।

मामले की पृष्ठभूमि:

आवेदक (अभिनेता अक्षय कुमार) ने 8 मार्च 2021 को उत्तरदाता (क्यू लर्न प्रा. लि.) के साथ एंडोर्समेंट एग्रीमेंट किया था, जिसके तहत उन्हें उत्तरदाता की सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए नियुक्त किया गया था। इस समझौते के तहत कुल 8.10 करोड़ रुपये की भुगतान राशि निर्धारित की गई थी, जिसे दो चरणों में दिया जाना था:

  1. पहली किश्त: ₹4.05 करोड़ (पहले दिन की सेवाओं के लिए, 4 मार्च 2021 को अदा की गई)।
  2. दूसरी किश्त: ₹4.05 करोड़ + जीएसटी, जो 15 अप्रैल 2022 या दूसरे दिन की सेवाओं के सात दिन पूर्व, जो भी पहले हो, अदा किया जाना था।

आवेदक ने IBC की धारा 8 के तहत डिमांड नोटिस जारी किया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि पहले दिन की सेवाएं पूरी करने के बावजूद उत्तरदाता ने दूसरी किश्त का भुगतान नहीं किया। कुल देय राशि ₹4.83 करोड़ (जिसमें जीएसटी और 12% वार्षिक ब्याज शामिल है) थी। आवेदक ने तर्क दिया कि दूसरी किश्त का भुगतान दूसरे दिन की सेवाएं प्रदान करने पर निर्भर नहीं था, बल्कि अनुबंध की धारा 5.1.2 के अनुसार, यह भुगतान हर स्थिति में देय था। उन्होंने यह भी दावा किया कि उत्तरदाता ने पहले दिन की सेवाओं से प्राप्त सामग्री का सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपयोग किया और इसका व्यावसायिक लाभ उठाया।

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उत्तरदाता का पक्ष:

उत्तरदाता (क्यू लर्न प्रा. लि.) ने तर्क दिया कि दूसरी किश्त का भुगतान इस शर्त पर निर्भर था कि दोनों पक्षों के बीच दूसरे दिन की सेवाओं की तारीख पर सहमति बने, जो नहीं बन पाई। उन्होंने यह भी कहा कि मामला अनुबंध के उल्लंघन से संबंधित है, जो IBC के तहत ऑपरेशनल डेब्ट की श्रेणी में नहीं आता

NCLT का निर्णय:

न्यायाधिकरण ने पाया कि IBC की धारा 5(21) के अनुसार, ऑपरेशनल डेब्ट का संबंध केवल उन दावों से होता है, जो वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति, या रोजगार से जुड़े बकाया वेतन आदि से उत्पन्न होते हैं।

  • न्यायाधिकरण ने स्पष्ट किया कि आवेदक का दावा अनुबंध उल्लंघन (ब्रीच ऑफ कॉन्ट्रैक्ट) से संबंधित है, न कि पहले से निश्चित किसी सेवा ऋण से, अतः यह IBC के तहत ऑपरेशनल डेब्ट नहीं हो सकता
  • अनुबंध की धारा 7.2(a) के अनुसार, यदि उत्तरदाता भुगतान करने में चूक करता है, तो आवेदक की सेवा प्रदान करने की बाध्यता समाप्त हो जाती है और ऐसे मामलों में समाधान केवल हर्जाने (डैमेजेस) के दावे के रूप में उपलब्ध होता है, न कि IBC के तहत ऑपरेशनल डेब्ट के रूप में
  • न्यायाधिकरण ने यह भी दोहराया कि IBC की प्राथमिकता दिवालियापन समाधान प्रक्रिया के लिए है, न कि अनुबंध संबंधी विवादों के निपटान के लिए

अंतिम निर्णय:

न्यायाधिकरण ने स्पष्ट किया कि IBC के तहत केवल योग्य ऋणों (Qualified Debts) का ही समाधान किया जा सकता है, जबकि यह विवाद अनुबंध उल्लंघन से संबंधित है, अतः यह IBC के दायरे में नहीं आता।

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न्यायाधिकरण ने कहा:

“NCLT की भूमिका केवल IBC के अंतर्गत निर्धारित दायरे तक सीमित है। अनुबंध विवादों को IBC के तहत नहीं लाया जा सकता, क्योंकि यह ऑपरेशनल या फाइनेंशियल डेब्ट की श्रेणी में नहीं आता। अतः इस प्रकार के दावों के लिए NCLT उचित मंच नहीं है।”

अतः न्यायाधिकरण ने IBC की धारा 9 के तहत दाखिल आवेदन को अस्वीकार कर दिया

वाद शीर्षक – अक्षय कुमार भाटिया बनाम क्यू लर्न प्रा. लि.

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