बोफोर्स घोटाले में नया मोड़: अधिवक्ता अजय अग्रवाल और माइकल हर्शमैन के बीच वार्ता, अमेरिकी यात्रा की संभावना

बोफोर्स घोटाले में नया मोड़: अधिवक्ता अजय अग्रवाल और माइकल हर्शमैन के बीच वार्ता, अमेरिकी यात्रा की संभावना

सुप्रीम कोर्ट में बोफोर्स घोटाले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अजय अग्रवाल ने गुरुवार को खुलासा किया कि उनकी निजी जांचकर्ता माइकल हर्शमैन के साथ व्हाट्सएप कॉल के माध्यम से सकारात्मक बातचीत हुई। इस बातचीत में 1980 के दशक के ₹64 करोड़ के बोफोर्स रिश्वत कांड पर चर्चा हुई, और हर्शमैन ने अमेरिका में अग्रवाल से मिलने और इस मामले से संबंधित नई जानकारी साझा करने पर सहमति व्यक्त की

सीबीआई की सक्रियता और हर्शमैन का रुख

हाल ही में, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने अमेरिका को पत्र अनुरोध (Letter Rogatory – LR) भेजा है, जिसमें हर्शमैन से सहयोग और साक्ष्य उपलब्ध कराने की अपील की गई है। हर्शमैन, जो भ्रष्टाचार की जांच में विशेषज्ञ माने जाते हैं, इस घोटाले से जुड़े नए तथ्यों को उजागर करने के लिए तैयार हैं

अग्रवाल और हर्शमैन के बीच हुई बातचीत की ऑडियो रिकॉर्डिंग में यह स्पष्ट हुआ कि हर्शमैन ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी और इस मामले पर विस्तार से चर्चा करने की इच्छा जताई। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि बोफोर्स मामले को वर्षों तक लंबित रखा गया, लेकिन सरकार द्वारा सच्चाई सामने लाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया

अधिवक्ता अजय अग्रवाल ने हर्शमैन को अमेरिका में मिलने के लिए राजी किया, क्योंकि वह वर्तमान में अपने वीज़ा संबंधित औपचारिकताओं को पूरा कर रहे हैं। हर्शमैन ने बताया कि उन्हें सरकार की ओर से किसी औपचारिक अनुरोध की जानकारी नहीं है, लेकिन वे मामले से जुड़ी सभी उपलब्ध जानकारी देने के लिए तैयार हैं

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RTI से हुआ खुलासा: जांच पर केवल ₹5 करोड़ खर्च हुए

ANI को दिए गए एक साक्षात्कार में, अधिवक्ता अजय अग्रवाल ने सूचना के अधिकार (RTI) के तहत प्राप्त जवाब का हवाला देते हुए बताया कि बोफोर्स घोटाले की जांच पर केवल ₹5 करोड़ खर्च किए गए। उन्होंने यह भी कहा कि जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ कार्यवाही रद्द की, तो अदालत ने गलत तरीके से यह उल्लेख किया कि सीबीआई ने इस जांच पर ₹250 करोड़ खर्च किए

अजय अग्रवाल का राजनीतिक और कानूनी सफर

अजय अग्रवाल सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता होने के साथ-साथ एक राजनेता भी हैं। उन्होंने 2014 के आम चुनावों में रायबरेली से भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था, जहां उनका सामना कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से हुआ, लेकिन वे चुनाव हार गए

माइकल हर्शमैन का भारत से जुड़ाव और बोफोर्स पर खुलासे

हर्शमैन, जो फेयरफैक्स ग्रुप के प्रमुख हैं, ने 2017 में भारत का दौरा किया था और आरोप लगाया था कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बोफोर्स घोटाले की जांच को बाधित किया था। उन्होंने कई मंचों पर यह दावा किया कि सरकार ने इस घोटाले को दबाने की कोशिश की और वे सीबीआई को मामले से जुड़ी जानकारी देने को तैयार हैं

हर्शमैन ने यह भी दावा किया कि 1986 में भारत के वित्त मंत्रालय ने उन्हें मुद्रा नियंत्रण कानूनों और मनी लॉन्ड्रिंग के उल्लंघनों की जांच के लिए नियुक्त किया था, जिनमें से कुछ बोफोर्स सौदे से जुड़े थे। उन्होंने भारतीय एजेंसियों के साथ सहयोग करने की इच्छा भी जताई।

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सीबीआई ने वित्त मंत्रालय से हर्शमैन की नियुक्ति से जुड़े दस्तावेज मांगे, लेकिन मंत्रालय ने जवाब दिया कि मामले की पुरानी प्रकृति के कारण कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है

बोफोर्स घोटाला: एक ऐतिहासिक भ्रष्टाचार मामला

सीबीआई ने 1990 में इस घोटाले की जांच शुरू की, तीन साल बाद एक स्वीडिश रेडियो चैनल ने यह सनसनीखेज खुलासा किया था कि बोफोर्स कंपनी ने भारतीय राजनेताओं और रक्षा अधिकारियों को रिश्वत दी थी ताकि ₹1,437 करोड़ के रक्षा सौदे को हासिल किया जा सके

इस मामले ने राजीव गांधी सरकार के लिए एक बड़ा राजनीतिक संकट खड़ा कर दिया और वर्षों से राजनीतिक विरोधियों द्वारा कांग्रेस पर निशाना साधने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है

यह घोटाला 400 155mm फील्ड होवित्जर तोपों की खरीद से जुड़ा था, जो बाद में कारगिल युद्ध में भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं

निष्कर्ष

माइकल हर्शमैन की बोफोर्स मामले में नई जानकारी देने की तत्परता और सीबीआई की सक्रियता इस तीन दशक पुराने घोटाले में एक नया मोड़ ला सकती है। यदि हर्शमैन से प्राप्त जानकारी पर्याप्त ठोस पाई जाती है, तो भारत सरकार और जांच एजेंसियों के लिए इस मामले को फिर से खोलने और नए सिरे से जांच शुरू करने की संभावना बन सकती है

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