Elgar Parishad case -याचिका पर सुनवाई के दौरान NIA COURT ने यह कहते हुए तीनों की याचिका खारिज कर दी कि दस्तावेजों व पत्रों से प्रथमदृष्टया पता चलता है कि आवेदकों ने प्रतिबंधित संगठन के अन्य सदस्यों के साथ देश में अशांति पैदा करने और सरकार को राजनीतिक रूप से अस्थिर करने की गंभीर साजिश रची थी। जिस तरह से पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या की गई थी उसी तरह ये लोग प्रधान मंत्री मोदी की भी हत्या करना चाहते थे।
एल्गार परिषद-भीमा कोरेगांव हिंसा मामले (Elgar Parishad-Bhima Koregaon violence case) में गिरफ्तार किए गए कबीर कला मंच (Kabir Kala Manch) के सदस्यों ज्योति जगताप, सागर गोरखे और रमेश गायचोर की जमानत याचिका खारिज कर दी गई है। याचिका खारिज करते हुए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) कोर्ट ने कहा कि “दस्तावेजों और पत्रों से प्रथम दृष्टया यह पता चलता है कि आवेदकों ने प्रतिबंधित संगठन के अन्य सदस्यों के साथ पूरे देश में अशांति पैदा (conspiracy to create unrest in country) करने और सरकार को राजनीतिक रूप से सत्ता में लाने के लिए एक गंभीर साजिश रची थी। इन सभी लोगों को एल्गार परिषद-भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार किया गया था।
ज्ञात हो की उक्त निर्णय सोमवार को सुनाया गया, लेकिन विस्तृत आदेश बुधवार की देर शाम उपलब्ध हो पाया।
विशेष न्यायाधीश दिनेश ई कोठालिकर ने कहा कि रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री इस प्रकार प्रथम दृष्टया दर्शाती है कि आवेदक न केवल प्रतिबंधित संगठन, सीपीआई (माओवादी) के सदस्य थे, बल्कि वे संगठन के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे जो लोकतंत्र को उखाड़ फेंकने के अलावा और कुछ नहीं है।
क्या है एलगार परिषद?
एलगार परिषद एक तरह की सभा या रैली है। इस सभा में कई सामाजिक कार्यकर्ता, पूर्व जज, आईपीएस अधिकारी और कई दलित चिंतक जुड़ते हैं. वे दलितों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ अपनी बात मजबूत करने के संगठित होते हैं. सीधे शब्दों में कहा जाए तो इसमें दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचार को लेकर एक मुहिम छेड़ी जाती है, जिसमें दलित अधिकारों, समानता आदि के लेकर बात की जाती है।
पहली बार कब आयोजित हुई थी एलगार परिषद?
एलगार परिषद का आयोजन पहली बार साल 2017 में 31 दिसंबर को हुआ था। इस वक्त यह पुणे के शनिवारवाडा फोर्ट में हुई थी। इस दौरान दलित संगठनों ने एलगार परिषद के आयोजन से पहले महाराष्ट्र में कई सभाएं आयोजित की थी, जिसके बाद करीब 35 हजार लोग परिषद में शामिल हुए थे। इसमें 200 से ज्यादा एनजीओ शामिल थे और कई अन्य हस्तियां भी शामिल हुई थीं. यह भीमा कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह पर आयोजित की गई थी, जिसमें मंहार दलितों ने पेशवा से युद्ध किया था।
परिषद के आयोजन के बाद भड़की कोरेगांव हिंसा-
31 दिसंबर 2017-1 जनवरी 2018 को परिषद के आयोजन के बाद कोरेगांव हिंसा भड़क गई थी, जिसमें कई लोग घायल हो गए थे. इसके बाद पुलिस ने कई एफआईआर दर्ज की और इस मामले में कई लोगों को गिरफ्तार भी किया। कई दिनों तक गिरफ्तारी का सिलसिला चलता रहा और कई कार्यकर्ता, पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया। साथ ही इस केस में यह भी बातें सामने आई कि इसका आयोजन करने वाले लोग कई प्रतिबंधित संगठनों से जुड़े हुए हैं. इसके बाद एलगार परिषद का आयोजन नहीं हो पाया।
राजीव की तरह ही मोदी की हत्या करना चाहते थे-
विशेष न्यायाधीश दिनेश ई कोठालिकर ने कहा कि रिकॉर्ड पर रखी सामग्री प्रथमदृष्टया दर्शाती है कि आवेदक न केवल प्रतिबंधित संगठन, सीपीआई (माओवादी) के सदस्य थे, बल्कि वे संगठन के मकसद को आगे बढ़ाने के लिए गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे। वे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तरह रोड शो के दौरान पीएम मोदी को निशाना बनाना चाहते थे। जिस तरह से पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या की गई थी उसी तरह ये लोग प्रधान मंत्री मोदी की भी हत्या करना चाहते थे।