जमानत नहीं देने पर सुप्रीम कोर्ट ने सेशन जज को कहा अपनी स्किल सुधारो और भेज दिया ज्यूडिशियल एकेडमी

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न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा था कि ऐसा बार-बार करने पर मजिस्ट्रट को ज्यूडिशियल एकेडमी में ट्रेनिंग के लिए भेजा जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायलय के एक सेशन जज से न्यायिक जिम्मेदारियां वापस लेते हुए उन्हें अपनी स्किल्स को बढ़ाने के लिए ज्यूडिशियल एकेडमी में भेजने के लिए कहा है। मामला एक सामान्य मामले में आरोपियों को जमानत नहीं दिए जाने की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने उनसे ये बातें कही हैं। जबकि 21 मार्च को ही सुप्रीम कोर्ट की ओर से स्पष्ट चेतावनी दी गई थी कि उसके आदेश का पालन नहीं करने की स्थिति में मजिस्ट्रेट का न्यायिक कार्य वापस ले लिया जाएगा।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा था कि ऐसा बार-बार करने पर मजिस्ट्रट को ज्यूडिशियल एकेडमी में ट्रेनिंग के लिए भेजा जाएगा। इस दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा अप्रैल के उन दो मामलों को कोर्ट के संज्ञान में लेकर आए, जिसमें जमानत खारिज कर दी गई थी।

जिन दो मामलो में सुप्रीम कोर्ट ने जज को यह सजा सुनाई है, उनमें से एक केस शादी में विवाद से जुड़ा है। इस केस में सेशन जज ने एक आरोपी, उसके माता-पिता और भाई की अग्रिम जमानत याचिक को खारिज कर दिया, जबकि उनकी गिरफ्तारी भी नहीं हुई थी। दूसरे केस में आरोपी कैंसर से पीड़ित था और गाजियाबाद की एक सीबीआई अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया।

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सुप्रीम कोर्ट पीठ ने दोनों मामलों पर निराशा जताते हुए कहा, “न्यायिक अधिकारियों द्वारा बड़ी संख्या में ऐसे आदेश पारित किए गए हैं जो हमारे आदेश के अनुरूप नहीं हैं।” पीठ ने कहा, “इस अदालत द्वारा दिया गया फैसला देश का कानून है और इसका पालन करना होगा। इसका पालन न करने का कोई सवाल ही नहीं उठता। उत्तर प्रदेश में स्थिति चिंताजनक है। 10 महीने पहले फैसला सुनाए जाने के बावजूद कई मामलों में इसका पालन नहीं किया जा रहा है।”

कोर्ट ने कहा, “21 मार्च को हमारे पिछले आदेश के बाद भी लखनऊ की एक अदालत ने इसका पूरी तरह से उल्लंघन करते हुए एक आदेश पारित किया था … हम इस आदेश को इलाहाबाद हाई कोर्ट के संज्ञान में लाते हैं … हाई कोर्ट को इसमें कार्रवाई करने की जरूरत है और ज्यूडिशियल एकेडमी में उनकी स्किल बढ़ाने के लिए जो भी जरूरी है, वो करें।” कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में पुलिसिया शासन की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने पिछले साल जुलाई में कई निर्देश पारित किए थे। इसमें कोर्ट ने कहा कि जहां कस्टडी की आवश्कता ना हो तो सात साल से कम की सजा के प्रावधान वाले केसों में गिरफ्तारी की जरूरत नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि अगर कोई आरोपी जांच में सहयोग कर रहा है तो, उसे चार्जशीट दाखिल करने के बाद ही हिरासत में लिया जाना चाहिए। सर्वोच्च कोर्ट ने यह भी कहा था कि ट्रायल कोर्ट की जिम्मेदारी है कि संविधान की गरिमा को बनाए रखें।

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