भ्रष्टाचार मामले में एफआईआर रद्द करने का आदेश निरस्त: सुप्रीम कोर्ट ने प्राथमिक जांच की अनिवार्यता को शिथिल किए जाने की पुनः पुष्टि की
सुप्रीम कोर्ट ने एक भ्रष्टाचार मामले में एफआईआर रद्द करने के कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त करते हुए यह स्पष्ट किया है कि यदि किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा विस्तृत स्रोत रिपोर्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश पारित किया गया हो, तो उस स्थिति में प्राथमिक जांच (Preliminary Enquiry) की आवश्यकता को शिथिल किया जा सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि:
यह अपील राज्य सरकार (कर्नाटक) द्वारा दायर की गई थी, जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट के एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी गई थी। उस आदेश के माध्यम से प्रथम प्रतिवादी श्री चन्नकेशव एच.डी. के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(b) सहपठित धारा 13(2) के तहत दर्ज एफआईआर और संबंधित कार्यवाही को पूरी तरह रद्द कर दिया गया था। यह मामला अवैध रूप से अर्जित संपत्ति (Disproportionate Assets) से संबंधित था।
न्यायालय की टिप्पणी:
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने State of Karnataka v. T.N. Sudhakar Reddy (2025) और Lalita Kumari v. State of UP (2014) जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए कहा:
“भ्रष्टाचार संबंधी मामलों में प्राथमिक जांच वांछनीय अवश्य है, किंतु अनिवार्य नहीं है। यदि कोई वरिष्ठ अधिकारी विस्तृत स्रोत रिपोर्ट के आधार पर संज्ञेय अपराध के घटित होने की संभावना देखते हुए एफआईआर दर्ज करने का आदेश देता है, तो उस स्थिति में प्राथमिक जांच की शर्त को शिथिल किया जा सकता है।“
प्रमुख तर्क और विश्लेषण:
- अभियोजन पक्ष के अनुसार, प्रथम प्रतिवादी एक सार्वजनिक पदाधिकारी (कर्नाटक पावर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड में सहायक अभियंता) के रूप में कार्य करते हुए अपनी ज्ञात आय से परे 6.64 करोड़ रुपये की संपत्ति अर्जित की थी।
- इस संबंध में द्वितीय प्रतिवादी, उप पुलिस अधीक्षक (DSP) द्वारा एक स्रोत रिपोर्ट तैयार की गई थी, जिसे वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SP) को सौंपा गया।
- इस रिपोर्ट को आधार बनाकर एसपी ने एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया।
- कोर्ट ने कहा कि यही स्रोत रिपोर्ट स्वयं में एक प्रकार की प्राथमिक जांच है, और इसके आधार पर एफआईआर दर्ज की गई थी।
अभियुक्त को सफाई देने का अधिकार नहीं:
पीठ ने यह भी दोहराया कि CBI बनाम थॉमंड्रू हन्ना विजयलक्ष्मी (2021) के निर्णय के अनुसार:
“किसी लोकसेवक को एफआईआर दर्ज किए जाने से पूर्व अपने पक्ष में सफाई देने का कोई निहित अधिकार नहीं है।”
यह सही कानूनी स्थिति है और इसे ही स्वीकार किया जाना चाहिए।
न्यायालय का निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि चूंकि एफआईआर संपूर्ण तथ्यों और पूर्व-संगृहीत रिपोर्ट के आधार पर दर्ज की गई थी, इसलिए उच्च न्यायालय द्वारा इसे निरस्त करना उचित नहीं था।
अतः पीठ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त करते हुए एफआईआर और संबंधित जांच प्रक्रिया को वैध घोषित किया।
📌 प्रकरण शीर्षक: State of Karnataka v. Sri Channakeshava. H.D. & Anr.
📌 विधिक विषयवस्तु: भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, धारा 13(1)(b) सहपठित 13(2)
📌 प्रमुख निर्णय: एफआईआर वैध, प्राथमिक जांच अनिवार्य नहीं
📌 प्रतिनिधित्व: अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत, प्रतिवादी की ओर से एओआर स्मरहर सिंह
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