‘धार्मिक उत्पीड़न के चलते भारत आए पाकिस्तानी ईसाई नागरिक को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं, बॉम्बे हाईकोर्ट जाने की दी छूट’

सुप्रीम कोर्ट

‘धार्मिक उत्पीड़न के चलते भारत आए पाकिस्तानी ईसाई नागरिक को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं, बॉम्बे हाईकोर्ट जाने की दी छूट’

नई दिल्ली | विधि संवाददाता
सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तानी नागरिक और रोमन कैथोलिक ईसाई समुदाय के सदस्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (CAA) के तहत भारतीय नागरिकता की मांग की थी या फिर उनके दीर्घकालिक वीज़ा (Long-Term Visa) की अवधि बढ़ाने का अनुरोध किया गया था। इसके साथ ही, उन्होंने 31 दिसंबर 2014 की कट-ऑफ तारीख को भी संविधान के अनुच्छेद 14 के उल्लंघन के रूप में चुनौती दी थी।

न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने याचिका का निस्तारण करते हुए याचिकाकर्ता को बॉम्बे हाईकोर्ट में उचित राहत के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता प्रदान की।


क्या था मामला?

याचिकाकर्ता का दावा है कि:

  • उनका जन्म भारत के गोवा में हुआ, लेकिन नागरिकता पाकिस्तानी मानी गई
  • वे 2016 में वैध दीर्घकालिक वीज़ा पर भारत आए, क्योंकि पाकिस्तान में ईसाइयों के विरुद्ध धार्मिक उत्पीड़न के चलते उन्हें देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।
  • याचिका में कहा गया,

    “पाकिस्तान में उनके साथ ईसाई होने के नाते लक्षित उत्पीड़न किया गया और कानून प्रवर्तन एजेंसियों से उन्हें कोई सहयोग नहीं मिला।”


अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग

याचिकाकर्ता का तर्क था कि:

  • वे 2016 से भारत में लगातार और वैध रूप से रह रहे हैं और भारतीय समाज में समाहित हो चुके हैं
  • उनका वीज़ा 20 जून 2025 को समाप्त हो जाएगा और उन्हें पाकिस्तान वापस भेजना अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होगा।

“यदि याचिकाकर्ता को पाकिस्तान भेजा गया, तो वहां उन्हें जीवन और स्वतंत्रता के लिए तत्काल खतरा है।”


CAA 2019 की कट-ऑफ तारीख को बताया मनमाना

याचिकाकर्ता ने CAA, 2019 में निर्धारित 31 दिसंबर 2014 की कट-ऑफ तारीख को मनमाना और भेदभावपूर्ण करार दिया। उन्होंने दलील दी कि:

“यह तिथि बिना किसी तार्किक आधार के तय की गई है और यह उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों की रक्षा के उद्देश्य से मेल नहीं खाती। आज भी पाकिस्तान में ईसाइयों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।”


गैर-नागरिकों के लिए भी अनुच्छेद 21 की सुरक्षा

याचिका में गैर-नागरिकों के लिए भी जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की बात कही गई और “non-refoulement” सिद्धांत का हवाला दिया गया। याचिका में उल्लेख किया गया:

“हमारे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर व्यक्ति, चाहे वह नागरिक हो या विदेशी, जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा का हकदार है।”


पत्नी का समर्थन और पासपोर्ट नवीनीकरण में असमर्थता

याचिका में याचिकाकर्ता की भारतीय नागरिक पत्नी द्वारा लिखा गया पत्र भी संलग्न था, जिसमें लिखा गया:

“वह एक रोमन कैथोलिक हैं, जो पाकिस्तान में भारी उत्पीड़न का सामना करते हैं। वे पासपोर्ट नवीनीकरण के लिए पाकिस्तान नहीं जा सकते क्योंकि उन्हें जान का खतरा है। इसलिए उन्हें वीज़ा विस्तार दिया जाना चाहिए।”


सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका के गुण-दोषों पर कोई टिप्पणी नहीं की। पीठ ने याचिका का निस्तारण करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता बॉम्बे हाईकोर्ट में राहत के लिए आवेदन कर सकते हैं।

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निष्कर्ष

यह मामला CAA 2019 की सीमा, धार्मिक उत्पीड़न से सुरक्षा, और गैर-नागरिकों के अधिकारों को लेकर एक गंभीर कानूनी और मानवीय प्रश्न उठाता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने राहत देने से इनकार किया, लेकिन याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने की छूट देकर आगे की कानूनी प्रक्रिया का रास्ता खुला रखा है।

मामले का शीर्षक: Jude Mendes v. Union of India (W.P. (C) No. 569/2025)

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