पतंजलि ने 10 लाख रुपए खर्च करके 67 अखबारों में दिया माफीनामा, नहीं पिघला सुप्रीम कोर्ट, बाबा रामदेव को दिया यह आदेश…..

न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने आरोप लगाया था कि कंपनी आधुनिक चिकित्सा और उस समय, कोविड-19 टीकों के खिलाफ बदनामी अभियान में लगी हुई थी. पिछली सुनवाई पर, बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक (Managing Director) आचार्य बालकृष्ण ने अदालत से कहा था कि वे विज्ञापनों पर अदालत के आदेशों का उल्लंघन करने के लिए सार्वजनिक माफी मांगने को तैयार हैं.

पतंजलि आयुर्वेद योगगुरु रामदेव की मौजूदगी में पतंजलि की ओर से पेश हुए वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पतंजलि ने 67 अखबारों में माफीनामा दिया है, जिसमें कंपनी के 10 लाख रुपए खर्च हुए हैं.

एलोपैथी दवाओं के खिलाफ विज्ञापन और पतंजलि आयुर्वेद द्वारा अपनी दवाओं के लिए ‘भ्रामक दावों’ पर अदालत की अवमानना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई. जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने जब इस मामले की सुनवाई की, तब कोर्ट रूम में योगगुरु रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के एमडी आचार्य बालकृष्ण मौजूद थे.

जब इस मामले की मंगलवार को सुनवाई हो रही थी, तब सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि आखिर कल माफीनामा दाखिल क्यों किया गया है, यह तो पहले ही कर दिया जाना चाहिए था. इस पर पतंजलि की ओर से पेश हुए सीनियर वकील मुकुल रोहतगी की तरफ से कहा गया कि हमने 67 अखबारों में हमने माफीनामा दिया है. इस पर हमने 10 लाख रुपए खर्च किए हैं. इसके बाद विज्ञापन पर अदालत ने पूछा कि ये उतने ही साइज का माफीनामा है, जितना बड़ा आप विज्ञापन देते हैं? अदालत ने पूछा क्या आप हमेशा इतने साइज का ही विज्ञापन देते है? जब पतंजलि के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि कंपनी ने विज्ञापन पर लाखों खर्च किए हैं, तो अदालत ने जवाब दिया कि इसकी हमें कोई चिंता नहीं है.

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सुप्रीम कोर्ट की तीन महत्वपूर्ण बातें…

  1. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता आईएमए (IMA) को भी फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा- एलोपैथी के डॉक्टर भी मरीजों को महंगी और अनावश्यक दवाएं लिखते हैं. सवाल IMA पर भी उठता है. आप भी अपना रुख साफ करें.
  2. FMCG कंपनियां शिशुओं, स्कूल जाने वाले बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले प्रोडक्ट्स के विज्ञापन प्रकाशित करके जनता को धोखा दे रही हैं. अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लाइसेंसिंग अधिकारियों को मामले में पक्षकार बनाने को कहा.
  3. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को पिछले 3 साल में भ्रामक विज्ञापनों पर उनके द्वारा की गई कार्रवाई के संबंध में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया. अदालत ने कहा- हम बच्चों, शिशुओं, महिलाओं को देख रहे हैं और किसी को भी भ्रमित नहीं किया जा सकता. केंद्र सरकार को भी आंखें खोलनी होंगी.

‘Television के एक हिस्से में पतंजलि का विज्ञापन चल रहा’-

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने कहा कि वह इस मामले की याचिका में कंजूमर एक्ट को भी शामिल कर सकते हैं. ऐसे में सूचना प्रसारण मंत्रालय का क्या? हमनें देखा है कि पतंजलि मामले में टीवी पर दिखाया जा रहा है कि कोर्ट क्या कह रहा है. ठीक उसी समय एक हिस्से में पतंजलि का विज्ञापन चल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि आयुष मंत्रालय ने नियम 170 (राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण की मंजूरी के बिना आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं के विज्ञापन पर रोक) को वापस लेने का फैसला क्यों किया? क्या आपके पास यह कहने का अधिकार है कि मौजूदा नियम का पालन न करें? क्या यह मनमाना नहीं है? क्या आपको प्रकाशित होने वाली चीडों की बजाय राजस्व की अधिक चिंता नहीं है?

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‘माफीनामा वाले एड को रिकॉर्ड पर लाइए’-

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि पतंजलि की तरफ से बताया कि उनकी तरफ से माफीनामा प्रकाशित किया गया है. हालांकि ये बात रिकॉर्ड पर नहीं है. इसके बाद मुकुल रोहतगी ने कहा कि आज ही वो इसे रिकॉर्ड पर डालेंगे. इस पर बेंच ने कहा कि मामला केवल पतंजलि तक ही नहीं है, बल्कि दूसरे कंपनियों के भ्रामक विज्ञापनों को लेकर भी चिंता है. सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को साफ तौर पर कहा कि माफीनामे का नया विज्ञापन भी पतंजलि को प्रकाशित करना होगा और उसे भी रिकॉर्ड पर लाना होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव के माफीनामे को एक बार फिर से स्वीकार नहीं किया और कहा कि मामले की सुनवाई 30 अप्रैल को होगी और अगली सुनवाई में रामदेव और बालकृष्ण को पेश होना होगा.

वाद शीर्षक – इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम भारत संघ
वाद संख्या – डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 645/2022

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