राजस्थान न्यायिक सेवा परीक्षा में आरक्षित प्रमाणपत्रों के अभाव में साक्षात्कार से वंचित अभ्यर्थियों की याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कीं
सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान राज्य में सिविल न्यायाधीश (Civil Judge) पद हेतु आयोजित चयन प्रक्रिया में आरक्षित वर्ग के प्रमाणपत्रों के अभाव में साक्षात्कार हेतु नहीं बुलाए गए अभ्यर्थियों की अपीलों को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसे अभ्यर्थी, जिनके पास नियत तिथि तक वैध प्रमाणपत्र नहीं थे, उन्हें चयन प्रक्रिया में कोई शिथिलता नहीं दी जा सकती।
पीठ की संरचना एवं निर्णय:
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह एवं न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की तीन सदस्यीय पीठ ने यह निर्णय उस विभाजित निर्णय (Split Verdict) के पश्चात सुनाया है, जो मई 2023 में दो न्यायाधीशों द्वारा दिया गया था। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा:
“…प्रक्रिया के अंतर्गत जारी परवर्ती अधिसूचना (Subsequent Notice) विज्ञापन, लागू नियमों, निर्देशों तथा सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी परिपत्रों के अनुरूप थी। अपीलार्थियों की याचिकाएं विधिसम्मत नहीं हैं और खारिज किए जाने योग्य हैं। इस मामले में किसी प्रकार की छूट न तो दी जा सकती है और न ही नियमों में इसका कोई प्रावधान है।”
न्यायालय ने दोहराया कि आवेदन पत्र में उम्मीदवार द्वारा प्रस्तुत जानकारी और उसके समर्थन में प्रस्तुत दस्तावेज उसी तिथि तक वैध होने चाहिए, जो संबंधित विज्ञापन में आवेदन की अंतिम तिथि के रूप में निर्दिष्ट हो।
प्रतिवादियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजू रामचंद्रन ने पक्ष प्रस्तुत किया, जबकि अपीलार्थियों की ओर से एओआर के. पारी वेन्थन ने पैरवी की।
मामले की पृष्ठभूमि:
राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा जुलाई 2021 में राजस्थान न्यायिक सेवा नियम, 2010 के अंतर्गत सिविल न्यायाधीश कैडर की नियुक्तियों हेतु विज्ञापन जारी किया गया था। इस विज्ञापन में आरक्षित श्रेणियों से संबंधित प्रमाणपत्रों की जारी तिथि के संदर्भ में कोई स्पष्ट निर्देश नहीं था। आवेदन की अंतिम तिथि 31 अगस्त 2021 निर्धारित की गई थी।
प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा संपन्न होने के उपरांत न्यायालय ने एक अधिसूचना जारी की, जिसमें उल्लेख किया गया कि आरक्षित वर्ग प्रमाणपत्र विज्ञापन की अंतिम तिथि से पहले जारी किए जाने चाहिए थे। इस अधिसूचना के आधार पर उन अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए योग्य नहीं माना गया, जिनके प्रमाणपत्र अंतिम तिथि के बाद जारी हुए थे। इन अभ्यर्थियों ने राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर और जोधपुर पीठों के समक्ष पृथक-पृथक रिट याचिकाएं दायर की थीं, जिन्हें खारिज कर दिया गया। इसके पश्चात उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
न्यायालय की तर्कपूर्ण टिप्पणी:
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा:
“कानून के ज्ञानी मस्तिष्क, जैसे कि हमारे समक्ष उपस्थित अपीलकर्ता, ‘ignorantia juris non excusat’ अर्थात ‘कानून की अज्ञानता कोई बहाना नहीं है’ सिद्धांत से बच नहीं सकते।”
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विज्ञापन में भले ही प्रमाणपत्र की तिथि स्पष्ट रूप से उल्लिखित न हो, परंतु परवर्ती अधिसूचना द्वारा स्पष्ट की गई कट-ऑफ तिथि विधिसम्मत है। इसके अतिरिक्त, संबंधित सरकारी परिपत्रों (दिनांक 09.09.2015 एवं 08.08.2019) के अनुसार आरक्षित प्रमाणपत्र की वैधता एक वर्ष मानी जाती है, जिसे एक हलफनामे के साथ तीन वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है।
अदालत ने यह भी पाया कि कोई भी अपीलकर्ता न तो वैध प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर सका और न ही अपेक्षित प्रारूप में हलफनामा जमा किया गया था।
न्यायालय का निष्कर्ष:
“इस प्रकरण में ऐसा कोई तर्क प्रस्तुत नहीं किया गया कि अपीलार्थियों ने अपने दावे के प्रमाण के लिए आवेदन किया था और प्रमाणपत्र जारी करने में सक्षम प्राधिकारी की ओर से देरी हुई हो। किसी भी अपीलकर्ता ने ऐसा दावा नहीं किया कि उन्होंने निर्धारित समयसीमा में पात्रता स्थापित कर ली थी।”
इस आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने अपीलें खारिज करते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा।
📄 मामले का शीर्षक:
साक्षी अर्हा बनाम राजस्थान उच्च न्यायालय एवं अन्य
Leave a Reply