POCSO Act: नाबालिग पत्नी से बलात्कार मामले में आरोपी पति को दी गई सजा को उच्च न्यायलय ने किया रद्द-

माननीय न्यायमूर्ति परेश उपाध्याय ने कहा – ”सिस्टम हम पर हंस रहा है क्योंकि एक 16 साल से अधिक उम्र की लड़की ने अपनी मर्जी से उस व्यक्ति से शादी की और दो बच्चों को जन्म दिया और अब उसके पति को बलात्कार के मामले में दोषी करार दिया गया है और वह जेल में बंद है।”

गुजरात उच्च न्यायलय ने पिछले हफ्ते नाबालिग पत्नी से बलात्कार करने के मामले में आरोपी एक व्यक्ति को दी गई सजा को रद्द करते हुए कहा कि अदालत द्वारा हस्तक्षेप न करने से महिला और दो बच्चे अपने पति/पिता के आश्रय से वंचित हो जाएंगे और जो न्याय के हित में नहीं होगा।

उच्च न्यायलय ने साथ ही साथ इस व्यक्ति को दोषी करार देने वाले निचली अदालत के आदेश को खारिज कर दिया।

इस प्रकरण में, कथित पीड़िता (पत्नी) ने स्वीकार किया है कि वह स्वंय ही दोषी/अपीलकर्ता के साथ उसकी पत्नी के रूप में रहने लगी थी और उसने उसके दो बच्चों को भी जन्म दिया है।

गुजरात उच्च न्यायालय ने कहा की यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि न तो उसने और न ही दोषी/पति ने अपने दो बच्चों के जन्म और पितृत्व से इनकार किया है।

कथित पीड़िता पत्नी/महिला का कथन-

कथित पीड़िता पत्नी/महिला ने स्वीकार किया कि अपीलकर्ता/दोषी/पति ने उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाए थे, हालांकि, 2018 में आरोपी पति के खिलाफ केस दर्ज किया गया और बाद में निचली अदालत ने उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 4, 6,8 और 12 के दोषी ठहराया था।

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6.6 The victim has deposed (in camera) at Exh.20 that she has left her parental home on her own and she started to live together with the appellant at appellant’s house. Further she has stated that, the appellant has kept physical relation with her consent.

पीड़िता ने (कैमरे में) Exh.20 में बयान दिया है कि वह उसने अपने माता-पिता का घर अकेले ही छोड़ दिया है और वह आरोपी के साथ उसके आवास पर रहने लगी है। पीड़िता ने आगे कहा की उसकी सहमति अपीलकर्ता के साथ शारीरिक संबंध बनाए रखा है।

माननीय न्यायमूर्ति परेश उपाध्याय की खंडपीठ ने इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए इसे बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत अपराध कहा जा सकता है, हालांकि, उन्होंने ध्यान दिया कि इसके अनुपालन की तुलना में इसका उल्लंघन अधिक देखा गया है, खासकर समाज के निचले तबके में ऐसा होता है।

विशेष रूप से, अपीलकर्ता और ‘पीड़िता’ मुकदमे के लंबित रहने के दौरान भी एक साथ रह रहे थे क्योंकि आरोपी व्यक्ति जमानत पर बाहर था और यहां तक ​कि निचली अदालत ने भी इस तथ्य पर ध्यान दिया था कि आरोपी व्यक्ति और ‘पीड़िता’ एक दूसरे के साथ पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं और उनके बच्चे भी हैं।

कोर्ट ने कहा की हालांकि, निचली अदालत ने फिर भी आरोपी/अपीलकर्ता को बलात्कार और पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराया। महत्वपूर्ण है कि मामले की सुनवाई विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो), जूनागढ़ के समक्ष की गई और ट्रायल कोर्ट ने दिनांक 15.07.2021 के फैसले के तहत अपीलकर्ता को उपरोक्त अपराधों के तहत दोषी ठहराया।

इससे पहले, पूर्व में सुनवाई के दौरान अगस्त 2021 में इस मामले की सुनवाई करते हुए, दोषसिद्धि के फैसले और इस व्यक्ति के खिलाफ पारित आदेश पर टिप्पणी करते हुए, न्यायमूर्ति परेश उपाध्याय की खंडपीठ ने मौखिक रूप से गुजराती में कहा था कि-

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”पूरी तरह से दिमाग लगाए बिना ही कानून का कार्यान्वयन किया गया है … हमें ऐसे मामलों पर सामूहिक रूप से सोचना होगा। मुझे ट्रायल कोर्ट में दोष नहीं मिल रहा है क्योंकि वह कानून को लागू करने के लिए बाध्य थी, यहां तक कि अभियोजन पक्ष को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।”

कोर्ट ने कहा –

  1. The glaring aspect of the matter is that, there is evidence Exh.76, which – because of legal requirement needs to be called as evidence of “the victim”, who stated that, she on her own, because of her wish had walked out of home and she started living with the present appellant and with that relation she has given birth to two children, one on 29.06.2019 and second on 22.01.2021. Neither the mother nor the father of these two children disown their birth nor paternity and still the father is convicted inter alia under Section 376 of the Indian Penal Code and is ordered to undergo RI for 10 years.

यह मामले का स्पष्ट पहलू है कि न तो दो बच्चों की मां (पीड़िता) और न ही पिता (बलात्कार के दोषी) ने उनके जन्म और पितृत्व से इनकार किया है और उसके बाद भी पिता को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के साथ-साथ अन्य धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया और उसे दस साल कैद की सजा सुनाई गई।

वास्तव में, कोर्ट ने कहा कि सत्र न्यायालय इस तथ्य से अवगत था कि पीड़िता और आरोपी ने एक-दूसरे से शादी की है क्योंकि उसने अपने फैसले में उल्लेख किया है कि दोनों पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं और इस प्रकार, सरकार से प्राप्त किसी भी मुआवजे / सहायता को वापस करने की आवश्यकता है।

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जस्टिस उपाध्याय ने मौखिक रूप से गुजराती में कहा-

”सिस्टम हम पर हंस रहा है क्योंकि एक 16 साल से अधिक उम्र की लड़की ने अपनी मर्जी से उस व्यक्ति से शादी की और दो बच्चों को जन्म दिया और अब उसके पति को बलात्कार के मामले में दोषी करार दिया गया है और वह जेल में बंद है।”

इन परिस्थितियों में, हाईकोर्ट ने पाया कि सत्र न्यायालय के दोषसिद्धि वाले आदेश को रद्द करने की आवश्यकता है और इसलिए, विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो) व तीसरे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, जूनागढ़ के दिनांक 15.07.2021 के आदेश को खारिज कर दिया गया।

केस टाइटल – ASHWINBHAI @ RAJ RANCHHODBHAI POYALA Versus STATE OF GUJARAT

IN THE HIGH COURT OF GUJARAT AT AHMEDABAD
R/CRIMINAL APPEAL NO. 1089 of 2021

CORAM: HONOURABLE MR. JUSTICE PARESH UPADHYAY

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