‘गवाहों की संख्या नहीं, गुणवत्ता मायने रखती है’: SC ने सजा की पुष्टि के लिए एक मात्र प्रत्यक्षदर्शी की गवाही पर भरोसा जताया

‘गवाहों की संख्या नहीं, गुणवत्ता मायने रखती है’: SC ने सजा की पुष्टि के लिए एक मात्र प्रत्यक्षदर्शी की गवाही पर भरोसा जताया

सर्वोच्च कोर्ट ने वर्ष 2007 में उत्तर प्रदेश में चार हत्याओं के मामलें में चार व्यक्तियों की दोषसिद्धि और सजा की पुष्टि करते हुए कहा, यह गवाहों की मात्रा नहीं बल्कि गवाहों की गुणवत्ता है जो मायने रखती है।

प्रस्तुत मामले में केवल एक चश्मदीद पिंकी सिंह की जांच की गई थी, जिसके माता-पिता, भाई और बहनोई की आरोपियों ने संपत्ति विवाद को लेकर हत्या कर दी थी। आरोपियों ने उस पर भी हमला किया था।

निचली अदालत ने चारों आरोपियों मुकेश, अजय उर्फ अज्जू, ब्रज पाल और रवि को मौत की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने अपील में मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।

शीर्ष अदालत ने अभियुक्तों और राज्य की ओर से दायर अपीलों पर विचार कर रहा था, जो मृत्युदंड के आजीवन कारावास में बदले जाने से व्यथित थे। एक आरोपी अजय की सुप्रीम कोर्ट में अपील की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी।

अपीलकर्ताओं द्वारा उठाया गया प्राथमिक तर्क यह था कि मामला एक अकेले गवाह के साक्ष्य पर आधारित था, जो मृतक से संबंधित थी और उसकी अपीलकर्ताओं से दुश्मनी थी। अपीलकर्ताओं ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पिंकी सिंह ने पहली बार में अपीलकर्ताओं के नामों का खुलासा नहीं किया।

एफआईआर अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज की गई है। अपीलकर्ताओं ने इस तथ्य पर भी भरोसा किया कि पिंकी सिंह का बयान एक मजिस्ट्रेट द्वारा सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज नहीं किया गया था। साथ ही, दो अन्य गवाहों, जिन्होंने अपराध के समय घर में होने का दावा किया था, का परीक्षण नहीं किया गया।

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न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की खंडपीठ ने तर्कों को खारिज कर दिया। पीठ ने इस स्पष्टीकरण को स्वीकार कर लिया कि गवाह ने पहली बार में डर के मारे हमलावरों के नामों का खुलासा नहीं किया और बाद में पुलिस को विश्वास होने पर नामों का खुलासा किया गया। अन्य गवाहों से पूछताछ न करने के संबंध में, पीठ ने कहा कि यह महत्वहीन है, जब तक कि एकमात्र गवाह का साक्ष्य विश्वसनीय है।

न्यायालय ने कहा की-

“धारा 164 सीआरपीसी के तहत बयान की जांच न करने का भी नीचे की अदालतों द्वारा निकाले गए निष्कर्षों से कोई प्रासंगिकता या असर नहीं है। यह जांच अधिकारी पर था कि वह धारा 164 सीआरपीसी के तहत बयान दर्ज करवाए।”

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के साथ कोई दुर्बलता नहीं पाकर सुप्रीम कोर्ट ने अपीलों को खारिज कर दिया। न्यायालय ने यह भी पाया कि हाईकोर्ट ने मृत्युदंड को कम करने के लिए उचित कारण बताए हैं।

केस टाइट – अजय उर्फ अज्जू व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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