₹6 चेंज नहीं लुटाने के चलते रेलवे के टिकट बुकिंग क्लर्क को नौकरी से धोना पड़ा हाथ, हाई कोर्ट ने भी राहत देने से किया इंकार

₹6 चेंज नहीं लुटाने के चलते रेलवे के टिकट बुकिंग क्लर्क को नौकरी से धोना पड़ा हाथ, हाई कोर्ट ने भी राहत देने से किया इंकार

विजिलेंस टीम के निर्देश पर फर्जी यात्री बन टिकट खरीदने के लिए आरपीएफ के जवान से किराया लेने के बाद ₹6 चेंज नहीं लुटाने के चलते रेलवे के बुकिंग क्लर्क को नौकरी से हाथ धोना पड़ गया है यात्रियों से अधिक किराया वसूल करने के आरोप में नौकरी से निकाले गए रेलकर्मी को मुंबई हाईकोर्ट ने राहत देने से भी इनकार कर दिया है ।

मामला 31 जुलाई, 1995 को कमरसल क्लर्क के रूप में नियुक्त किये गए राजेश वर्मा से जुड़ा है। कुर्ला टर्मिनस में नियुक्त वर्मा को यात्रियों से अधिक किराया वसूलने के आरोप में रेलवे प्रसाशन की डिसिप्लिनरी अथॉरिटी ने जांच के बाद 31 जनवरी 2002 को नौकरी से निकाल दिया था।

उसी दौरान विजिलेंस टीम ने एक रेलवे पुलिस बल (RPF) कांस्टेबल को नकली यात्री बनाकर क्लर्क राजेश वर्मा के काउंटर पर पहुंचाया। खिड़की पर जाकर उसने कुर्ला टर्मिनस से आरा (बिहार) तक के टिकट के लिए अनुरोध किया। किराया ₹214 था और यात्री ने ₹500 का नोट क्लर्क वर्मा को दिया। वर्मा को ₹286 लौटाने थे लेकिन लौटाए केवल ₹280 यानी ₹6 कम।

इसके बाद विजिलेंस टीम ने बुकिंग क्लर्क राजेश वर्मा के टिकटिंग काउंटर पर छापेमारी की। लेकिन टिकट बिक्री के हिसाब से उनके रेलवे कैश में 58 रुपये कम मिले। वहीं, क्लर्क की सीट के पीछे रखी स्टील की अलमारी से 450 रुपये की राशि बरामद की गई। विजिलेंस टीम के अनुसार, यह राशि वर्मा को यात्रियों से अधिक किराया वसूली से मिली थी।

बुकिंग क्लर्क राजेश वर्मा के खिलाफ आरोपों की अनुशासनात्मक जांच की गई। रिपोर्ट आने पर 31 जनवरी 2002 को उन्हें दोषी ठहराया गया और नौकरी से निकाल दिया गया। वर्मा ने इस आदेश को अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष चुनौती दी। लेकिन 9 जुलाई 2002 को इसे खारिज कर दिया। फिर वर्मा 23 अगस्त 2002 को पुनरीक्षण प्राधिकरण के समक्ष गए। 17 फरवरी 2003 को उनकी दया याचिका भी खारिज कर दी गई।

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वर्मा की ओर से पेश वकील मिहिर देसाई ने अदालत के समक्ष कहा था कि छुट्टे पैसे की उपलब्धता न होने के कारण यात्री को 6 रुपये तुरंत वापस नहीं किए जा सके और नकली यात्री से शेष राशि की वापसी के लिए इंतजार करने को कहा गया था।

वकील देसाई ने अदालत में दलील दी कि जिस अलमारी में कथित तौर पर 450 रुपये की राशि पाई गई थी, वह क्लर्क वर्मा के नियंत्रण में नहीं थी। वह अलमारी बुकिंग कार्यालय में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के उपयोग के लिए थी और असल में मुख्य बुकिंग पर्यवेक्षक के लिए आवंटित थी।

न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एसवी मार्ने की बेंच ने कहा कि उस दौरान न तो फर्जी यात्री और न ही किसी गवाह ने क्लर्क वर्मा को बाकी के 6 रुपये लौटाने की बात कहते सुना था। इसका रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है। मतलब वर्मा का 6 रुपये की राशि लौटाने का कोई इरादा ही नहीं था।

हाईकोर्ट की बेंच ने यह भी कहा कि अलमारी का स्थान वर्मा की खिड़की के ठीक पीछे था और उनकी वहां तक पहुंच थी। अनुशासनात्मक जांच में फर्जी यात्री से अधिक किराया वसूलना भी साबित हुआ है। इस मामले में वर्मा को अपना पक्ष रखने का अवसर मिल चुका है।

रेलवे की ओर से पेश वकील सुरेश कुमार ने हाईकोर्ट से केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) कैट के आदेश को कायम रखने का आग्रह किया।

हाई कोर्ट ने कहा की क्लर्क पर लगे आरोपों को ठोस सबूतों के आधार पर साबित किया गया है । लिहाजा क्लर्क को इस मामले में राहत नहीं देने के अप्रैल 2004 के कैट के आदेश को कायम रखा जाता है और याचिका खारिज की जाती।

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