केवल प्रतिशोध में FIR दर्ज होना, धारा 482 CrPC के तहत प्राथमिकी को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता: उच्च न्यायालय

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में दिए अपने निर्णय में कहा कि केवल प्रतिशोध में FIR दर्ज होना, धारा 482 सीआरपीसी के तहत प्राथमिकी को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता।

न्यायमूर्ति चीकाती मानवेंद्रनाथ रॉय की बेंच के मुताबिक, यह एक ऐसा मामला है जो जांच अधिकारी को जांच के दौरान तय करना होता है।

न्यायमूर्ति चीकाती मानवेंद्रनाथ रॉय ने कहा की “आरोप झूठे हैं या नहीं और रिपोर्ट वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा दर्ज की गई रिपोर्ट के प्रतिवाद के रूप में दर्ज की गई है या नहीं, यह जांच के दरमियान जांच अधिकारी द्वारा पता लगाए जाने का विषय है। इसलिए, इस स्तर पर एफआईआर को रद्द करने के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत इस न्यायालय के हस्तक्षेप का वैध कानूनी आधार नहीं हैं।”

Therefore, the matter requires investigation to find out the truth or otherwise of the said allegations. The mere fact that after the case was registered against the petitioners on the report lodged by the de facto complainant that the present report was lodged against them as a counter blast by itself cannot be a ground to quash the F.I.R. Whether the allegations are false or not and whether the report was lodged as a counter blast to the report lodged by the de facto complainant or not is the matter to be ascertained by the Investigating Officer during the course of investigation.

क्या है मामला-

वर्तमान मामले में, प्राथमिकी एफआईआर रद्द कराने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आपराधिक याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ता पर धारा 341 (गलत तरीके से रोकना), 323, (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) 324 (खतरनाक हथियारों या साधनों से चोट पहुंचाना), 354 (महिला पर शील भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग), 506 (आपराधिक धमकी) सहपठित धारा 34 आईपीसी, के तहत मामला दर्ज किया गया था। वास्तविक शिकायतकर्ता, जो दूसरा प्रतिवादी है, उसने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि याचिकाकर्ताओं ने उस पर हमला किया था और उसे पीटा था और उसकी पत्नी का शील भंग किया था। एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच की जा रही थी।

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कोर्ट के समक्ष-

याचिकाकर्ता के वकील ने इस आधार पर प्राथमिकी रद्द करने की मांग की कि प्रतिशोध में प्राथमिकी दर्ज की गई थी और प्राथमिकी दर्ज करने में तीस दिन की देरी हुई थी। राज्य के वकील ने इस आधार पर तत्काल याचिका को खारिज करने की मांग की कि प्राथमिकी में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कैसे याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी की पिटाई की और अपनी पत्नी की शील भंग की। आगे यह तर्क दिया गया कि मामले की जांच की आवश्यकता है।

प्राथमिकी और संबंधित दस्तावेजों पर गौर करने के बाद, अदालत ने कहा कि प्राथमिकी याचिकाकर्ता के खिलाफ स्पष्ट आरोप लगाती है और उक्त आरोप, प्राथमिकी में उल्लिखित संबंधित धाराओं के तहत प्रथम दृष्टया दंडनीय अपराध हैं।
इस तरह देखते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका खारिज कर दी।

केस टाइटल – श्रीमती एच. मल्लेश्वरम्मा बनाम आंध्र प्रदेश और अन्य राज्य
केस नंबर – क्रिमिनल पेटिशन नंबर 530 ऑफ़ 2022

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