दिल्ली की रोहिणी कोर्ट ने मानसिक रूप से अक्षम नाबालिग के यौन शोषण के मामले में मुख्य आरोपी को 10 साल की सजा सुनाई
दिल्ली की रोहिणी कोर्ट ने हाल ही में उत्तर-पश्चिम दिल्ली में 2017 में मानसिक रूप से अक्षम एक नाबालिग लड़के के साथ यौन शोषण के मामले में एक व्यक्ति को 10 साल के कारावास की सजा सुनाई है। मुख्य आरोपी और पीड़ित एक ही गांव के निवासी थे। इस मामले में सितंबर 2017 में प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गई थी।
कोर्ट का फैसला और सजा का विवरण
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (ASJ) सुशील बाला डागर ने मुख्य आरोपी को पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। इसके अलावा, चोट पहुंचाने, घर में अनधिकृत घुसपैठ करने और आपराधिक धमकी देने के अपराधों के लिए भी उसे अलग-अलग जेल की सजा दी गई है।
अन्य दो दोषियों को चोट पहुंचाने, घर में अनधिकृत घुसपैठ करने और आपराधिक धमकी देने के अपराधों में छह महीने की सजा सुनाई गई।
कोर्ट ने इस मामले में पीड़ित को 10.5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश भी दिया है।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सजा सुनाते हुए न्यायालय ने कहा:
“समाज के प्रत्येक व्यक्ति की यह नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चों की देखभाल करे और उन्हें यौन अपराधियों के हाथों शारीरिक एवं मानसिक शोषण से बचाए। आज के बच्चे ही समाज का भविष्य हैं।”
न्यायालय ने आगे कहा:
“कमजोर बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना एक स्वस्थ, विकसित और सशक्त समाज के लिए अनिवार्य है। बचपन में हुए यौन शोषण के मानसिक आघात अविस्मरणीय होते हैं और व्यक्ति को जीवन भर प्रभावित करते हैं, जिससे उसके शारीरिक और मानसिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है।”
3 मार्च को दिए गए इस फैसले में न्यायालय ने विशेष रूप से यह उल्लेख किया कि मुख्य आरोपी ने मानसिक रूप से अक्षम नाबालिग पीड़ित के साथ जबरन यौन शोषण किया, जो कि उसकी मानसिक स्थिति का अनुचित लाभ उठाने का एक गंभीर कृत्य था।
पीड़ित और दोषी एक ही गांव के निवासी थे और दोषी को पीड़ित की मानसिक स्थिति की पूरी जानकारी थी, इसके बावजूद उसने इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया।
सजा पर बहस के दौरान अभियोजन पक्ष की दलील
सजा निर्धारण पर हुई बहस के दौरान अतिरिक्त लोक अभियोजक (APP) योगिता कौशिक ने अदालत से आग्रह किया कि दोषियों को अधिकतम सजा दी जाए, ताकि समाज में अन्य समान मानसिकता रखने वाले व्यक्तियों को ऐसा जघन्य और घृणित अपराध करने से रोका जा सके।
उन्होंने आगे कहा:
“इस मामले में दोषियों द्वारा किया गया अपराध अत्यंत आपत्तिजनक और घोर निंदनीय है। ऐसे मामलों में कठोरतम सजा आवश्यक है, ताकि समाज में एक स्पष्ट संदेश जाए कि बाल यौन शोषण जैसे अपराधों के लिए कोई रियायत नहीं दी जाएगी।“
मुख्य आरोपी का आपराधिक रिकॉर्ड
इसके अलावा, अदालत को यह भी बताया गया कि मुख्य आरोपी पहले से ही दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में तीन अन्य आपराधिक मामलों में संलिप्त था।
निष्कर्ष
इस निर्णय के माध्यम से न्यायालय ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि यौन अपराध, विशेष रूप से मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के खिलाफ किए गए अपराधों के प्रति किसी भी प्रकार की सहानुभूति नहीं बरती जाएगी। अदालत ने समाज की सामूहिक जिम्मेदारी को रेखांकित करते हुए कहा कि बाल सुरक्षा केवल एक कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी है।
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