शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह रोशनी अधिनियम Roshni Act के तहत आने वाले लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करें और उन्हें उनके घरो से न निकालें।
केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता मुजफ्फर इकबाल खान ने बताया कि शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि उन्हें अपने घरों से न निकालें।
अधिवक्ता ने बताया कि अगली सुनवाई 31 जनवरी को है और सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से स्पष्टीकरण मांगा है। कोर्ट ने कहा है कि जब तक वे इसके साथ नहीं आते, उन्हें कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए कहा गया है।
11 अक्तूबर को जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा था कि रोशनी अधिनियम Roshni Act असंवैधानिक है और इसके तहत किए गए सभी कार्य इसमें शामिल हैं। हाईकोर्ट ने माना था कि जम्मू और कश्मीर राज्य भूमि (कब्जाधारकों के लिए स्वामित्व का अधिकार) अधिनियम, 2001 पूरी तरह से असंवैधानिक है और इसके तहत किए गए सभी कार्य या संशोधन असंवैधानिक और शून्य हैं।
जाने क्या है रोशनी अधिनियम-
जानकारी हो कि जम्मू-कश्मीर राज्य भूमि अधिनियम, 2001 को तत्कालीन फारूक अब्दुल्ला सरकार ने जल विद्युत परियोजनाओं के लिए फंड एकत्रित करने के उद्देश्य से बनाया था। इस कानून को ‘रोशनी’ नाम दिया गया था। इसके अनुसार, भूमि का मालिकाना हक उसके अनधिकृत कब्जेदारों को इस शर्त पर दिया जाना था कि वे बाजार भाव पर सरकार को भूमि की कीमत का भुगतान करेंगे। इसके लिए कटऑफ मूल्य वर्ष 1990 की गाइडलाइन के अनुसार तय किए गए थे। शुरुआत में सरकारी जमीन पर कब्जा करने वाले किसानों को कृषि के लिए मालिकाना हक दिया गया।
गौरतलब हो की इस रोशनी अधिनियम Roshni Act में दो बार संशोधन किए गए, जो मुफ्ती मोहम्मद सईद और गुलाम नबी आजाद की सरकार के कार्यकाल में हुए। उस दौरान कटऑफ मूल्य पहले 2004 और बाद में 2007 के हिसाब से कर दिए गए। 2014 में सीएजी की रिपोर्ट आई, जिसमें खुलासा हुआ कि 2007 से 2013 के बीच जमीन ट्रांसफर करने के मामले में गड़बड़ी हुई।
CAG सीएजी रिपोर्ट में दावा किया गया कि सरकार ने 25 हजार करोड़ के बजाय सिर्फ 76 करोड़ रुपये ही जमा कराए। जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के आदेश पर इस मामले की जांच अब सीबीआई को सौंप दी थी।