सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम : पूर्व CJI ने जोर देते हुए कहा कि ‘शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा की गई प्रारंभिक सिफारिश में सर्वसम्मत की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, इसे बहुमत से पास कर सकते हैं लेकिन अगर किसी नाम को दोबारा भेजा जा रहा है तो यह जरूरी है कि उस नाम पर सभी की सहमति हो।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को लेकर पूछे गए सवाल पर भारत के पूर्व चीफ जस्टिस यूयू ललित का बड़ा बयान आया है। उन्होंने कहा, ‘शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा की गई प्रारंभिक सिफारिश में सर्वसम्मत की आवश्यकता नहीं है।
उन्होंने दोहराया की इसे बहुमत से पास कर सकते हैं लेकिन अगर किसी नाम को दोबारा भेजा जा रहा है तो यह जरूरी है कि उस नाम पर सभी की सहमति हो।
कॉलेजियम को लेकर दिया था पूर्व चीफ जस्टिस यूयू ललित का बयान-
इसके पहले 11 फरवरी को भी पूर्व चीफ जस्टिस यूयू ललित का कॉलेजियम को लेकर बयान आया था। उनसे पूछा गया था कि क्या कॉलेजियम सिस्टम को बदलने की जरूरत है। इसपर उन्होंने कहा कि इसका उत्तर इतना आसान नहीं है। यदि आप इसके लिए कारण चाहते हैं तो मैं दस मिनट और लूंगा। हालांकि, समय की कमी के चलते वह अपना जवाब पूरा नहीं कर पाए।
चीफ जस्टिस ने इसी कार्यक्रम में जजों पर सरकार के दबाव को लेकर पूछे गए सवाल का भी जवाब दिया था। उनसे पूछा गया था कि क्या उन्होंने सीजेआई के तौर पर काम करते हुए कार्यपालिका पर दबाव को महसूस किया है? इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा, ‘बिल्कुल नहीं। चीफ जस्टिस के रूप में न्यायाधीश होने के अलावा आपने जो अतिरिक्त कार्यभार धारण किया है वह प्रमुख होने का है। उनके अनुसार, वह बेंचों का गठन कर सकते हैं। मामलों को सूचीबद्ध कर सकते हैं। यह उनका विशेषाधिकार है। प्रशासनिक पक्ष निश्चित रूप से कॉलेजियम की बैठक है। वह वो है, जो बैठक बुलाता है, प्रस्ताव बनाता है कि न्यायाधीश कौन होगा आदि… ‘