दिल्ली हाईकोर्ट: सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा सर्वोपरि, दोषी की सजा बरकरार

दिल्ली हाईकोर्ट: सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा सर्वोपरि, दोषी की सजा बरकरार

दिल्ली हाईकोर्ट ने क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CrPC) की धारा 397 और 401 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए, ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए दोषी की सजा की पुष्टि की

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांत शर्मा ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में वास्तविक प्रगति करनी है, तो पहले यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वे सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षित महसूस करें

अदालत ने कहा कि जब तक यह सुनिश्चित नहीं किया जाता, तब तक महिला सशक्तिकरण पर की जाने वाली कोई भी चर्चा मात्र औपचारिक बनी रहेगी


मामले की पृष्ठभूमि

मामले के अनुसार, पीड़िता बस में महिलाओं के लिए आरक्षित सीट पर बैठी थी, जबकि आरोपी ठीक उसके दाईं ओर पुरुषों की सीट पर बैठा था।

बस के थोड़ी ही दूरी तय करने के बाद, आरोपी ने अशोभनीय इशारे करना शुरू कर दिया, जिस पर पीड़िता ने उसे ऐसा न करने के लिए कहा।

हालांकि, आरोपी पीड़िता की अनदेखी करते हुए आंख मारने लगा, जिससे गुस्से में आकर पीड़िता ने उसे थप्पड़ मार दिया।

इसके बाद, एक सहयात्री ने आरोपी को सीट छोड़ने के लिए कहा, लेकिन जब सीटें खाली हुईं तो आरोपी फिर से पीड़िता के पास आकर बैठ गया।

सबसे गंभीर घटना तब हुई जब पीड़िता बस से उतरने लगी। आरोपी ने उसे पकड़ लिया और जबरदस्ती उसके होठों पर किस किया

पीड़िता ने खुद को छुड़ाने की पूरी कोशिश की, लेकिन आरोपी ने उसे नहीं छोड़ा। अंततः, मौके पर मौजूद लोगों ने आरोपी को पकड़ लिया और पुलिस के हवाले कर दिया

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पीड़िता की शिकायत के आधार पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 और 509 के तहत मामला दर्ज किया गया।


अदालत का विश्लेषण और निर्णय

हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले का विश्लेषण करते हुए कहा कि पीड़िता की गवाही आरोपों के मूल तत्वों पर पूरी तरह सुसंगत थी

हालांकि, सीटिंग अरेंजमेंट और हमले से पहले के संपर्क के बारे में कुछ मामूली विसंगतियां हो सकती हैं, लेकिन इससे अभियोजन पक्ष के तर्कों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

अदालत ने कहा कि आरोपी का व्यवहार, जिसमें लगातार अनुचित इशारे करना, पीड़िता के विरोध के बावजूद उसके पास बैठना, और अंततः जबरन किस करना— यह साफ तौर पर पीड़िता की मर्यादा भंग करने, आपराधिक बल का उपयोग करने और हमले की श्रेणी में आता है

यह न केवल अशोभनीय आचरण है, बल्कि महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला कृत्य भी है, जो IPC की धारा 354 और 509 के तहत अपराध की परिभाषा में आता है।


‘पीड़िता पुलिस अधिकारी की बेटी थी’ – आरोपी का बचाव खारिज

अदालत में आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि पीड़िता एक पुलिस अधिकारी की बेटी थी और इसी वजह से आरोपी को झूठा फंसाया गया

हालांकि, अदालत ने इस दलील को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि सिर्फ पीड़िता के परिवार की पृष्ठभूमि को आधार बनाकर यह नहीं माना जा सकता कि आरोपी को झूठा फंसाया गया है

इसके अलावा, स्वयं आरोपी ने स्वीकार किया कि वह और पीड़िता अजनबी थे, जो कि झूठे फंसाने की थ्योरी को कमजोर करता है।

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महिलाओं की सुरक्षा के प्रति उदासीनता को लेकर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

अदालत ने इस घटना को महिलाओं के खिलाफ अपराधों के बढ़ते मामलों का गंभीर उदाहरण बताते हुए कहा कि हालांकि सख्त कानून मौजूद हैं, लेकिन कुछ अपराधी अब भी दंड के डर के बिना ऐसी हरकतें करने का साहस रखते हैं

अदालत ने चिंता जताई कि यदि बस में कोई मौजूद न होता, तो क्या पीड़िता चुपचाप अन्याय सहने के लिए मजबूर हो जाती?

हाईकोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक परिवहन महिलाओं की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए है, न कि उन्हें असुरक्षित महसूस कराने के लिए

यदि ऐसे मामलों में नरमी बरती गई, तो यह अपराधियों को और अधिक दुस्साहसी बना देगा


महिला सशक्तिकरण के लिए सुरक्षित माहौल जरूरी

हाईकोर्ट ने कहा कि अगर महिलाओं को वास्तव में सशक्त बनाना है, तो सबसे पहले उन्हें ऐसा माहौल देना होगा जहां वे बेखौफ होकर जी और घूम सकें

जो लोग सार्वजनिक स्थानों को असुरक्षित बनाते हैं, उन्हें सख्ती से दंडित किया जाएगा

जब तक यह सुनिश्चित नहीं किया जाता, तब तक महिला सशक्तिकरण और समानता की सभी चर्चाएं मात्र दिखावा ही रहेंगी

अंततः, अदालत ने ट्रायल कोर्ट के फैसले में कोई कानूनी त्रुटि नहीं पाई और दोषी की सजा को बरकरार रखा

वाद शीषक – अनुपेंद्र बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली)
वाद संख्या – CRL.REV.P. 739/2024, निर्णय दिनांक 28-02-2025

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