सुप्रीम कोर्ट में फर्जीवाड़े का गंभीर मामला: फर्जी वकील और जाली समझौते के जरिए फैसला हासिल करने के आरोपों पर जांच के आदेश
जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस जोयमाल्या बागची की पीठ ने 13 दिसंबर 2024 का आदेश किया निरस्त, 3 सप्ताह में मांगी रिपोर्ट
नई दिल्ली, 14 मई 2025: सुप्रीम कोर्ट में एक अभूतपूर्व फर्जीवाड़े का मामला सामने आया है, जिसमें एक पक्षकार पर आरोप है कि उसने जाली वकील और फर्जी समझौता पत्र के माध्यम से शीर्ष अदालत से फैसला अपने पक्ष में करवा लिया, जबकि वास्तविक पक्षकार को मामले की कोई जानकारी ही नहीं थी।
यह मामला बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की भूमि को लेकर उत्पन्न हुआ विवाद है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अब 13 दिसंबर 2024 को पारित अपने ही आदेश को निरस्त कर दिया है और फर्जीवाड़े के आरोपों की जांच का निर्देश देते हुए तीन सप्ताह में रिपोर्ट मांगी है।
फर्जी तरीके से समझौता और आदेश का आरोप
मामले में हरीश जायसवाल नामक पक्षकार ने कोर्ट में अर्जी दाखिल कर आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट में उनकी ओर से एक जाली वकील ने फर्जी समझौता पत्र प्रस्तुत कर दिया, जिसके आधार पर कोर्ट ने 13 दिसंबर 2024 को फैसला सुनाया था।
वास्तविकता:
- हरीश जायसवाल को कोई नोटिस प्राप्त नहीं हुआ।
- उन्होंने कोई वकील नियुक्त नहीं किया।
- उनकी ओर से कोर्ट में कैविएट दाखिल होने की बात सामने आई, जबकि उन्होंने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया।
फर्जीवाड़े के प्रमुख आरोप
- बिपिन बिहारी सिन्हा उर्फ बिपिन प्रसाद सिंह ने, आरोप के अनुसार, झूठे बिक्री करार के आधार पर जमीन की कीमत अदा करने का दावा करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
- निचली अदालतों और पटना हाई कोर्ट ने बिपिन बिहारी की याचिका खारिज कर दी थी और बिक्री करार को अप्रामाणिक बताया था।
- इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट में एकतरफा आदेश पारित हो गया क्योंकि याचिका के समर्थन में फर्जी समझौता और वकील की नियुक्ति दर्शाई गई।
सुनवाई में उठे महत्वपूर्ण तथ्य
- 90 वर्ष के हरीश जायसवाल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही में शामिल हुए।
- उनके वकीलों ने कहा कि तीन अदालतों से मामला जीतने के बाद हरीश जायसवाल को समझौता करने का कोई कारण नहीं था।
- AOR वकील जिनके नाम पर दस्तावेज कोर्ट में प्रस्तुत किए गए, उनकी पुत्री जो स्वयं अधिवक्ता हैं, मंगलवार को पेश हुईं और कोर्ट को बताया कि
“मेरे पिता न तो इस मामले में कभी पेश हुए और न ही पिछले पांच वर्षों से वकालत कर रहे हैं।”
कोर्ट की सख्त टिप्पणी और आदेश
कोर्ट ने कहा कि ऐसे आरोप अत्यंत गंभीर हैं, क्योंकि यह न्यायपालिका की प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर सीधा हमला है।
जांच के आदेश देते हुए कोर्ट ने कहा कि
“यदि कुछ गलत नहीं किया गया है तो जांच से किसी को क्या आपत्ति हो सकती है?”
इसके साथ ही कोर्ट ने 13 दिसंबर 2024 का आदेश रद्द करते हुए फर्जीवाड़े की जांच के निर्देश दिए हैं और स्पष्ट किया कि
“फर्जी दस्तावेजों और प्रतिनिधित्व के आधार पर पारित आदेश की वैधता नहीं रह सकती।”
आगे की प्रक्रिया
- तीन सप्ताह में जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।
- बिपिन बिहारी सिन्हा की ओर से आरोपों का विरोध किया गया, लेकिन कोर्ट ने उनकी आपत्तियों को खारिज करते हुए जांच की आवश्यकता पर बल दिया।
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