पार्टिशन सूट में सेटलमेंट डीड में सभी पक्षकारों की लिखित सहमति शामिल होनी आवश्यक केवल कुछ पक्षों के बीच सहमति अमान्य : सुप्रीम कोर्ट

पार्टिशन सूट में सेटलमेंट डीड में सभी पक्षकारों की लिखित सहमति शामिल होनी आवश्यक केवल कुछ पक्षों के बीच सहमति अमान्य : सुप्रीम कोर्ट

सर्वोच्च न्यायलय में न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति जेबी परदीवाला के बेंच ने अपील पर फैसला सुनाते हुए माना कि संयुक्त संपत्ति के बंटवारे के मुकदमे में केवल कुछ पक्षों के बीच सहमति से डिक्री को बनाए नहीं रखा जा सकता, जब संयुक्त संपत्ति के संबंध में सेटलमेंट डीड निष्पादित किया गया तो इस तरह के समझौते को वैधता प्राप्त करने के लिए लिखित सहमति और ‘सभी’ पक्षकारों के हस्ताक्षर रिकॉर्ड करना चाहिए।

मामला क्या है-

वर्ष 1969 में कुमार साहू का निधन हो गया और उनके तीन बच्चे चारुलता (पुत्री), शांतिलता (पुत्री) और प्रफुल्ल (पुत्र) बच गए। 03.12.1980 को चारुलता ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष पार्टिशन के लिए मुकदमा दायर किया, जिसमें उनके मृत पिता साहू की पैतृक संपत्ति के साथ-साथ स्व-अर्जित संपत्तियों में 1/3 हिस्से का दावा किया गया। ट्रायल कोर्ट ने 30.12.1986 को प्रारंभिक डिक्री पारित की और कहा कि चारुलता और शांतिलता पैतृक संपत्तियों में 1/6 हिस्सा और स्वर्गीय कुमार साहू की स्व-अर्जित संपत्तियों में 1/3 हिस्सा पाने की हकदार हैं। ट्रायल कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि बेटियां मध्यम मुनाफे की हकदार हैं। हालांकि, प्रफुल्ल (पुत्र) के संबंध में वह पैतृक संपत्ति में 4/6 वें हिस्से के हकदार है और साहू की स्व-अर्जित संपत्तियों में 1/3 हिस्सा था, जिसमें मुख्य लाभ भी शामिल था।

प्रफुल्ल ने हाईकोर्ट के समक्ष पहली अपील दायर की, जिसमें यह तर्क दिया गया कि साहू की सभी संपत्तियां पैतृक संपत्ति हैं। अपील के लंबित रहने के दौरान, शांतिलता और प्रफुल्ल ने 28.03.1991 को समझौता किया, जिसके तहत शांतिलता ने प्रफुल्ल के पक्ष में 50,000/- रुपये के बदल संयुक्त संपत्ति में अपना हिस्सा छोड़ दिया। हालांकि, इस तरह के सेटलमेंट डीड पर चारुलता द्वारा हस्ताक्षर नहीं किए गए, जिनके पास संयुक्त संपत्ति में हिस्सेदारी थी।

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प्रफुल्ल ने इस मुद्दे पर हाईकोर्ट के समक्ष प्रथम अपील दायर करना जारी रखा कि क्या कुछ संपत्तियां जो विभाजन के मुकदमे की विषय वस्तु थीं, पैतृक हैं या उनके पिता द्वारा स्वयं अर्जित की गईं। एक समानांतर अपील में चारुलता ने अपनी बहन और भाई के बीच हुए सेटलमेंट डीड दिनांक 28.03.1991 की वैधता को चुनौती दी। हाईकोर्ट के समक्ष लंबित उक्त प्रथम अपील में प्रफुल्ल ने समझौता याचिका दायर की। हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने सेटलमेंट डीड को वैध और प्रफुल्ल को शांतिलता की संपत्ति के हिस्से का हकदार मानते हुए प्रथम अपील का निस्तारण किया। हालांकि, इस सवाल पर कुछ भी तय नहीं किया गया कि कौन-सी संपत्ति पैतृक या स्वयं अर्जित की गई और अकेले इस मुद्दे पर हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष लेटर पेटेंट अपील दायर की गई।

दिनांक 05.05.2011 को हाईकोर्ट की खंडपीठ ने प्रफुल्ल द्वारा दायर अपील खारिज करते हुए कहा की प्रफुल्ल और शांतिलता के बीच हुए सेटलमेंट डीड अमान्य कर दिया। प्रफुल्ल ने दिनांक 05.05.2011 के आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपील में यह तर्क दिया गया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (अधिनियम, 1956) में 2005 में लाए गए संशोधन, जिससे बेटियां बेटों के बराबर सह-दायित्व बन गईं। इतने वर्षों के बाद सेवा में नहीं लगाया जा सकता। इसके अलावा, शांतिलता के अधिकार समाप्त हो गए और सेटलमेंट डीड के मद्देनजर, प्रफुल्ल को हस्तांतरित कर दिए गए।

शीर्ष कोर्ट का फैसला पार्टिशन सूट में सेटलमेंट डीड में ‘सभी’ पक्षकारों की लिखित सहमति और हस्ताक्षर शामिल होना चाहिए खंडपीठ ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश XXIII नियम 3 के अनुसार, जब मुकदमे में दावा किसी कानूनी समझौते द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से समायोजित किया गया तो समझौता लिखित रूप में होना चाहिए और पक्षकारों द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए।

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अदालत ने यह पाया कि तीन भाई-बहनों की संयुक्त संपत्ति के संबंध में अकेले प्रफुल्ल और शांतिलता के बीच सेटलमेंट डीड दिनांक 28.03.199 निष्पादित किया गया। चारुलता तीसरी सहोदर और संयुक्त संपत्ति की सह-स्वामी होने के नाते समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया।

खंडपीठ ने कहा कि सेटलमेंट डीड ‘सभी’ पक्षों की लिखित सहमति के बिना होने के कारण गैरकानूनी है। संयुक्त संपत्ति के बंटवारे के मुकदमे में केवल कुछ पक्षों के बीच सहमति से डिक्री को बनाए नहीं रखा जा सकता है।

अस्तु बेंच ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा किए गए हिस्से के आवंटन को सही ठहराया और पक्षकारों के शेयरों को फिर से निर्धारित किया। बेंच द्वारा सेटलमेंट डीड को अमान्य कर दिया गया और प्रफुल्ल और शांतिलता के हिस्से का दावा नहीं कर सकते हैं।

केस टाइटल – प्रशांत कुमार साहू व अन्य बनाम चारुलता साहू व अन्य

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