ALLAHABD HIGH COURT: बच्चे के साथ ओरल सेक्स गंभीर यौन अपराध नहीं, ऐसे मामले में पॉक्सो एक्ट की धारा 6 और 10 के तहत सजा नहीं सुनाई जा सकती-
Allahabad High Court ने बच्चे के साथ ओरल सेक्स को गंभीर यौन अपराध मानने से इंकार किया है। कोर्ट ने निचली अदालत से मिली सजा के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान दोषी की सजा 10 से कम कर 7 साल की। साथ ही दोषी पर 5 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया।
नाबालिग के साथ ओरल सेक्स गंभीर अपराध नहीं है. इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने ओरल सेक्स को ‘गंभीर यौन हमला’ (Serious Offence) न मानते हुए नाबालिग के साथ ओरल सेक्स (Oral sex) के एक मामले की सुनवाई करते हुए यह निर्णय दिया. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बच्चे के साथ ओरल सेक्स के एक मामले में निचली कोर्ट से मिली सजा को भी कम कर दिया है. कोर्ट ने इस प्रकार के अपराध को पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय माना. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यह कृत्य एग्रेटेड पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट या गंभीर यौन हमला नहीं है. लिहाजा ऐसे मामले में पॉक्सो एक्ट की धारा 6 और 10 के तहत सजा नहीं सुनाई जा सकती.
नाबालिग के साथ ओरल सेक्स के एक मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने दोषी की सजा 10 साल से घटाकर 7 साल कर दी, साथ ही उस पर 5 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया. सोनू कुशवाहा ने सेशन कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. सोनू कुशवाहा की अपील पर न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा ने यह फैसला सुनाया.
क्या था पूरा मामला-
अपीलकर्ता पर आरोप था कि वह शिकायतकर्ता के घर आया और उसके 10 साल के बेटे को साथ ले गया. उसे 20 रुपये देते हुए उसके साथ ओरल सेक्स किया. सोनू कुशवाहा ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश/ विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अधिनियम, झांसी द्वारा पारित उस निर्णय के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में आपराधिक अपील दायर की थी, जिसमें कुशवाहा को दोषी ठहराया गया था.
सेशन कोर्ट ने आरोपी को पॉक्सो एक्ट में दिया था दोषी करार-
सेशन कोर्ट ने उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन अपराध) और धारा 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया था. कोर्ट के सामने सवाल यह था कि क्या नाबालिग के मुंह में लिंग डालना और वीर्य गिराना पॉक्सो एक्ट की धारा 5/6 या धारा 9/10 के दायरे में आएगा. फैसले में कहा गया कि यह दोनों धाराओं में से किसी के दायरे में नहीं आएगा. लेकिन यह पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय है.
‘बच्चे के मुंह में लिंग डालना ‘पेनेट्रेटिव यौन हमले’की श्रेणी में’-
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि एक बच्चे के मुंह में लिंग डालना ‘पेनेट्रेटिव यौन हमले’ की श्रेणी में आता है, जो यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) अधिनियम की धारा 4 के तहत दंडनीय है, परंतु अधिनियम की धारा 6 के तहत नहीं. इसलिए न्यायालय ने निचली कोर्ट द्वारा अपीलकर्ता सोनू कुशवाहा को दी गई सजा को 10 साल से घटाकर 7 साल कर दिया.
बच्चे के साथ ओरल सेक्स गंभीर यौन अपराध नहीं- कोर्ट
कोर्ट ने बच्चे से ओरल सेक्स को पॉक्सो एक्ट की धारा-4 के तहत दंडनीय माना, लेकिन कहा कि यह एग्रेटेड पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट (गंभीर यौन हमला नहीं) है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले में पॉक्सो एक्ट की धारा 6 और 10 के तहत सजा नहीं सुनाई जा सकती. बता दें कि निचली अदालत ने याची को धारा 377, 506 और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दोषी करार दिया था.
हाईकोर्ट के सामने सवाल यह था कि क्या नाबालिग से ओरल सेक्स पॉक्सो एक्ट की धारा 5/6 या 9/10 के दायरे में आएगी? फैसले में कहा गया कि यह दोनों धाराओं में से किसी में भी नहीं आएगा, कोर्ट ने कहा यह पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय अपराध है.
सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अधिनियम, झांसी के निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। सोनू कुशवाहा के खिलाफ दस वर्ष के बच्चे से ओरल सेक्स का आरोप था. जस्टिस अनिल कुमार ओझा की एकलपीठ ने सोनू कुशवाहा की अपील पर आदेश दिया.
केस टाइटल – सोनू कुशवाहा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
Cr.Apeal No. 5415 of 2018
CORAM – Hon’ble Justice Anil Kumar Ojha
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