खनिजों पर राज्यों को अप्रैल 2005 से रॉयल्टी और कर वसूलने की अनुमति, सुप्रीम कोर्ट ने दिया 12 वर्षों में किस्तों में वसूली का समय

सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त, 2024 खनिजों पर राज्यों को रॉयल्टी और कर वसूली का हक देकर बड़ा फैसला दिया। जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्यों को 2005 से बकाया कर लेने की अनुमति दी। साथ ही 12 वर्षों में किस्तों में वसूली का समय भी दिया। केंद्र और खनन कंपनियों के विरोध के बावजूद यह निर्णय लिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राज्यों को खनिज अधिकारों और खनिज-युक्त भूमि पर टैक्स लगाने के अधिकार को बरकरार रखा और उन्हें एक अप्रैल, 2005 से रॉयल्टी वसूल करने की अनुमति दे दी। कोर्ट के इस फैसले से भारतीय खनन उद्योग को बड़ा झटका लगेगा। रॉयल्टी की बकाया राशि 1।5 लाख करोड़ रुपये से दो लाख करोड़ रुपये तक होने का अनुमान जताया गया है।

संबंधित मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस फैसले का खनन, इस्पात, बिजली और कोयला कंपनियों पर बहुत बड़ा वित्तीय असर देखने को मिलेगा। खनन कार्यों से जुड़ी कंपनियों के संगठन फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनरल इंडस्ट्रीज (फिमी) ने कहा कि भारतीय खनन क्षेत्र पहले से ही दुनिया में सबसे अधिक कराधान की समस्या का सामना कर रहा है। इसमें 25 जुलाई, 2024 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने राज्यों को खनन गतिविधियों पर विभिन्न कर और शुल्क लगाने के लिए बेलगाम अधिकार दे दिए।

फिमी के अतिरिक्त महासचिव बी के भाटिया ने कहा, ‘इसके बीच बुधवार को आया नया आदेश भारतीय खनन उद्योग को और झटका देगा क्योंकि रॉयल्टी की बकाया राशि 1।5 लाख करोड़ रुपये से लेकर दो लाख करोड़ रुपये तक हो सकती है। इस फैसले से ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों की खदानें सबसे अधिक प्रभावित होंगी।’

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कोर्ट ने 25 जुलाई को 8:1 के बहुमत से दिए अपने पिछले फैसले में कहा था कि राज्यों के पास खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी शक्ति है। कोर्ट ने 1989 के उस फैसले को खारिज कर दिया था, जिसमें खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर रॉयल्टी लगाने का अधिकार सिर्फ केंद्र के पास होने की बात कही गई थी।

उस फैसले को आगामी प्रभाव से लागू करने की दलील केंद्र सरकार की तरफ से दी गई थी लेकिन मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने उस दलील को नकार दिया। पीठ में जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिसमनोज मिश्रा, जस्टिस उज्जल भूइयां, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे। नौ जजों की संविधान पीठ ने कहा कि राज्यों को खनिज रॉयल्टी वसूलने का अधिकार एक अप्रैल, 2005 से दिया जाता है। हालांकि, बकाया राशि के भुगतान पर कुछ शर्तें भी तय की गई हैं।

किस्तों में भुगतान करने का समय-

सूची-2 की प्रविष्टि 49 भूमि तथा इमारतों पर कर से जुड़ी है जबकि प्रविष्टि 50 खनिज विकास से संबंधित कानून द्वारा लागू किसी भी पाबंदी के अधीन खनिज अधिकारों पर करों से जुड़ी है। पीठ ने कहा कि राज्यों द्वारा कर लेने के लिए एक अप्रैल 2026 से 12 वर्ष की अवधि में किस्तों में भुगतान करने का समय दिया जाएगा।”

भाटिया ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के नवीनतम निर्णय का न केवल खनन उद्योग पर बल्कि संपूर्ण मूल्य शृंखला पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और इससे मूल्य शृंखला के सभी अंतिम उत्पादों की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि होगी। भाटिया ने कहा, ‘इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए और खनन क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए हमें लगता है कि केंद्र सरकार को तत्काल जरूरी विधायी कदम उठाने चाहिए।’

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अंतरराष्ट्रीय कॉपर एसोसिएशन इंडिया के प्रबंध निदेशक मयूर करमरकर ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत से आने वाले ये बदलाव खनिज उद्योग के कारोबारी मॉडल को प्रभावित करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र और खनन कंपनियों द्वारा बकाया राशि का भुगतान खनिज समृद्ध राज्यों को अगले 12 सालों में चरणबद्ध तरीके से किया जा सकता है। हालांकि, पीठ ने राज्यों को बकाया राशि के भुगतान पर किसी भी प्रकार का जुर्माना नहीं लगाने का निर्देश दिया।

राज्यों की मांग का कर रहे थे विरोध-

केंद्र और खनन कंपनियों ने 31 जुलाई को सुनवाई के दौरान 1989 से एकत्रित की गयी रॉयल्टी वापस करने के लिए राज्यों की मांग का विरोध किया। 25 जुलाई के फैसले ने 1989 के उस निर्णय को पलट दिया था जिसमें कहा गया था कि केवल केंद्र के पास खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर रॉयल्टी लगाने का अधिकार है। इसके बाद कुछ विपक्षी दल शासित खनिज संपन्न राज्यों ने 1989 के फैसले के बाद से केंद्र द्वारा लगाई गई रॉयल्टी और खनन कंपनियों से लिए गए करों की वापसी की मांग की। रॉयल्टी वापस करने के मामले पर 31 जुलाई को सुनवाई हुई और फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।

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