‘वकीलों को छूट नहीं’: सुप्रीम कोर्ट ने मारपीट और गुंडागर्दी करने वाले वकील के 7 साल के निलंबन को दी मंजूरी
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐसे वकील के निलंबन को सही ठहराया जिसे तमिलनाडु में होटल में जबरन घुसने, संपत्ति क्षति और कर्मचारियों से मारपीट के आरोप में 7 साल के लिए प्रैक्टिस से निलंबित कर दिया गया था। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि ऐसे आचरण को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, जो विधिक पेशे की गरिमा को ठेस पहुँचाते हैं।
क्या है मामला?
तमिलनाडु के मदुरई में स्थित बाईपास रोड पर होटल गौरी कृष्णा के मालिक हरिहर सूदन ने वकील के. कार्मेगम पर लगातार परेशान करने और संपत्ति को बाधित करने के आरोप लगाए थे। आरोप के अनुसार, वकील ने जानबूझकर होटल के सामने निर्माण कर रास्ता अवरुद्ध किया और कोर्ट के स्टे ऑर्डर की भी अवहेलना की।
वर्ष 2016 में वकील अपने साथियों के साथ होटल पहुंचा, और अपनी SUV कार से होटल का मुख्य दरवाज़ा तोड़कर अंदर घुस आया। इसके बाद स्टाफ के साथ मारपीट की गई और नकदी भी लूटी गई। यह पूरी घटना पुलिस और न्यायिक रिकॉर्ड में दर्ज हुई।
बार काउंसिल की अनुशासनात्मक कार्रवाई
घटना की शिकायत पर तमिलनाडु स्टेट बार काउंसिल और बाद में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने वकील को दोषी पाया।
- पहले 1 वर्ष का निलंबन लगाया गया था।
- लेकिन सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद BCI ने पुनर्विचार याचिका पर निलंबन अवधि बढ़ाकर 7 वर्ष कर दी।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
वकील की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश अधिवक्ता ने सजा बढ़ाने पर आपत्ति जताई। लेकिन जस्टिस विक्रम नाथ ने सख्त लहज़े में कहा:
“जब वकील को बार काउंसिल द्वारा सजा दी गई थी, उसके बाद भी वह मदुरई अदालत में वकालतनामा दाखिल करता रहा। सुप्रीम कोर्ट से सजा की पुष्टि के बावजूद उसने BCI में दोबारा राहत की मांग की। अब उसे कोई रियायत नहीं दी जा सकती।”
आम नागरिक क्या कर सकते हैं?
यह मामला एक अहम कानूनी संदेश देता है — कि वकीलों के पेशेवर आचरण को एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के तहत कड़ी निगरानी में रखा गया है। यदि कोई वकील अपने पेशे का दुरुपयोग करता है, तो आम नागरिक:
- स्टेट बार काउंसिल या बार काउंसिल ऑफ इंडिया में शिकायत कर सकते हैं।
- अनुशासन समिति (Disciplinary Committee) दोषी पाए जाने पर वकील का लाइसेंस निलंबित या रद्द कर सकती है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय स्पष्ट संकेत देता है कि कानूनी पेशा विशेषाधिकार नहीं, बल्कि जिम्मेदारी है। कोई भी वकील, चाहे वह कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो, यदि कानून की मर्यादा को तोड़ता है, तो उसे कठोर सजा भुगतनी होगी।
यह फैसला बार काउंसिलों की अनुशासनात्मक शक्ति को न्यायिक समर्थन प्रदान करता है और कानूनी समुदाय के लिए एक सशक्त अनुशासनात्मक उदाहरण बनकर सामने आता है।
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