सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के एक मामले में दोषसिद्धि को रद्द करते हुए कहा कि किसी गवाह की गवाही, जो “आंशिक रूप से विश्वसनीय और आंशिक रूप से अविश्वसनीय” हो, उसे प्रमाणित किए बिना दोषसिद्धि बनाए नहीं रखी जा सकती।
न्यायालय ने उन अपीलकर्ताओं को बरी कर दिया जिन्हें आईपीसी की धारा 147, 148, 452 और 302 सहपठित धारा 149 के तहत दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में एकमात्र चश्मदीद गवाह की गवाही “मुख्यतः अविश्वसनीय” पाई गई और उसे पुष्ट करने के लिए कोई अन्य साक्ष्य उपलब्ध नहीं था।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा,
“यदि यह मान भी लिया जाए कि उच्च न्यायालय की दृष्टि में सिंधुबाई (मुख्य गवाह) की गवाही आंशिक रूप से विश्वसनीय और आंशिक रूप से अविश्वसनीय थी, तो ऐसे में उच्च न्यायालय को उसकी गवाही की पुष्टि के लिए अन्य प्रमाणों की आवश्यकता होनी चाहिए थी। हालांकि, उच्च न्यायालय ने स्वयं स्वीकार किया कि अभियोजन पक्ष ने सीताबाई को गवाह के रूप में पेश नहीं किया और इस कारण सिंधुबाई की गवाही की कोई पुष्टि नहीं हुई।”
संक्षिप्त पृष्ठभूमि
मामले में शिकायतकर्ता और एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी ने आरोप लगाया था कि अपीलकर्ताओं ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर रंजिश के चलते उसके पति और देवर की हत्या कर दी। ट्रायल कोर्ट ने शिकायतकर्ता की गवाही के आधार पर दस आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। बाद में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने छह आरोपियों को बरी कर दिया, लेकिन अपीलकर्ताओं की दोषसिद्धि को बरकरार रखा। इसके बाद अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट की दलीलें
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष की पूरी दलील शिकायतकर्ता की गवाही पर आधारित थी। हाई कोर्ट ने पहले ही उसकी गवाही को “आंशिक रूप से विश्वसनीय और आंशिक रूप से अविश्वसनीय” मान लिया था और इसी आधार पर कुछ आरोपियों को बरी भी किया था।
अदालत ने दोहराया कि जब किसी गवाह की गवाही पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं होती, तो दोषसिद्धि को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त पुष्टि की आवश्यकता होती है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया,
“यदि कोई गवाह आंशिक रूप से विश्वसनीय और आंशिक रूप से अविश्वसनीय पाया जाता है, तो जब तक उसकी गवाही की पुष्टि न हो, दोषसिद्धि नहीं दी जा सकती।”
अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता सिंधुबाई की गवाही को पुष्ट करने के लिए अभियोजन पक्ष ने कोई अन्य स्वतंत्र गवाह पेश नहीं किया।
“इस स्थिति में, उच्च न्यायालय केवल सिंधुबाई (PW-1) की गवाही पर दोषसिद्धि बनाए रखने में न्यायसंगत नहीं था, खासकर जब उसकी गवाही को ‘मुख्य रूप से अविश्वसनीय’ माना गया था। यदि ऐसा करना था, तो उच्च न्यायालय को उसकी गवाही की पुष्टि के लिए अन्य प्रमाणों की आवश्यकता होनी चाहिए थी,” कोर्ट ने कहा।
अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया-
“हमारे विचार में, सिंधुबाई (PW-1) की गवाही की कोई पुष्टि नहीं हुई है। ऐसे में, दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं रह सकती और अपीलकर्ताओं को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए।”
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए अपीलकर्ताओं को बरी कर दिया।
वाद शीर्षक – मेहतार बनाम महाराष्ट्र राज्य
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