“सहमति से बने संबंध का बिगड़ना बलात्कार नहीं”: सुप्रीम कोर्ट ने युवराज के विरुद्ध रेप का केस रद्द किया
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि केवल इस आधार पर कि सहमति से बना प्रेम संबंध बाद में टूट गया, आपराधिक कानून की प्रक्रिया को नहीं चलाया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना न केवल अदालतों पर अनावश्यक बोझ डालता है, बल्कि आरोपी की सामाजिक पहचान को भी गंभीर क्षति पहुँचाता है।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता अमोल भगवान नेहुल की उस याचिका को खारिज कर दिया गया था, जिसमें उन्होंने उनके खिलाफ दर्ज बलात्कार और अन्य आरोपों को रद्द करने की मांग की थी।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा:
“यह वह मामला नहीं है जहाँ शुरुआत से ही विवाह का झूठा वादा किया गया हो। सहमति से बना संबंध यदि बाद में बिगड़ जाए या दोनों साथी एक-दूसरे से दूर हो जाएं, तो उसे दंडात्मक कार्रवाई का आधार नहीं बनाया जा सकता। इस प्रकार का व्यवहार न केवल अदालतों का समय नष्ट करता है बल्कि आरोपी की पहचान पर एक ‘कलंक’ छोड़ता है।”
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि “हर वादे के टूटने को झूठा वादा मानकर बलात्कार का मामला नहीं बनाया जा सकता”, और इस प्रकार के प्रावधानों के दुरुपयोग के प्रति कई बार चेतावनी दी जा चुकी है।
पीठ के समक्ष अधिवक्ता संदीप सुधाकर देशमुख ने अपीलकर्ता की ओर से और अधिवक्ता आदित्य अनिरुद्ध पांडे ने प्रतिवादियों की ओर से पक्ष रखा।
मामले की पृष्ठभूमि
2022 से अपीलकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच प्रेम संबंध होने का दावा किया गया। महिला का आरोप था कि युवक ने विवाह का वादा कर कई बार उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए, वह गर्भवती हुई और गर्भपात भी कराया गया। साथ ही उसने क्रूरता, गाली-गलौज और जान से मारने की धमकी के आरोप भी लगाए।
अपीलकर्ता ने बॉम्बे हाईकोर्ट में धारा 482 CrPC के तहत आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ
- कोर्ट ने FIR में दर्ज आरोपों को सत्य मानते हुए भी यह पाया कि शिकायतकर्ता की सहमति उसकी स्वतंत्र इच्छा पर आधारित थी।
- शिकायतकर्ता ने स्वयं यह स्वीकार किया कि वह 8 जून 2022 से अपीलकर्ता को जानती थी और उनसे प्रेम करती थी।
- उन्होंने 12 महीनों से अधिक समय तक संबंध बनाए रखे, यहाँ तक कि शादी के बाद भी दो बार लॉज में जाकर उनसे मुलाकात की।
- शिकायतकर्ता का कथन उसकी स्वयं की गतिविधियों से मेल नहीं खाता, जिससे उसकी विश्वसनीयता संदिग्ध हो जाती है।
कोर्ट का कहना था:
“FIR से यह स्पष्ट है कि यह दोनों के बीच सहमति पर आधारित संबंध था। इसलिए प्रथम दृष्टया कोई आपराधिक मामला बनता हुआ नहीं दिखता।”
महत्वपूर्ण कानूनी निष्कर्ष
- IPC की धारा 376(2)(n) (दोहराया गया बलात्कार) और धारा 506 (आपराधिक धमकी) के अपराध की आवश्यक विधिक शर्तें इस मामले में पूरी नहीं होतीं।
- आरोपी की उम्र मात्र 25 वर्ष होने के कारण कोर्ट ने यह भी कहा कि उसके भविष्य को देखते हुए लंबी न्यायिक प्रक्रिया से गुजरना उसके जीवन को प्रभावित कर सकता है।
न्यायिक निष्कर्ष और आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में जल्दबाज़ी में आपराधिक मुकदमा दर्ज करना व्यक्ति के मौलिक अधिकारों और न्याय की आत्मा के विरुद्ध है।
न्यायालय का अंतिम आदेश:
- बॉम्बे हाईकोर्ट का 28 जून 2024 का आदेश रद्द किया गया।
- कराड तालुका पुलिस स्टेशन, सातारा में दर्ज सी.आर. नं. 490/2023 और उससे संबंधित सभी कार्यवाहियाँ, जिसमें RCC नं. 378/2023 शामिल है, रद्द कर दी गईं।
- अपीलकर्ता को सभी आरोपों से मुक्त किया गया और यदि कोई बेल बांड भरे गए थे, तो वे भी निरस्त माने गए।
मामले का नाम:
अमोल भगवान नेहुल बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य (न्यूट्रल साइटेशन: 2025 INSC 782)
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