सुप्रीम कोर्ट Constitution Bench ने मध्यस्थ निर्णयों में संशोधन पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (Arbitration and Conciliation Act, 1996) के तहत न्यायालयों को मध्यस्थ (arbitral) पुरस्कारों में संशोधन करने का अधिकार है या नहीं, इस महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न पर अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, संजय कुमार, के.वी. विश्वनाथन और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं, ने इस मुद्दे पर तीन दिनों तक चली सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, अरविंद दातार, दारियस खंबाटा, शेखर नपाहडे और रितिन राय सहित कई वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनीं।

सरकार और वरिष्ठ वकीलों की दलीलें

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जिन्होंने 13 फरवरी को केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अपनी दलीलें प्रस्तुत कीं, ने संविधान पीठ से आग्रह किया कि मध्यस्थ पुरस्कारों में संशोधन का प्रश्न विधायिका (legislature) पर छोड़ दिया जाए, ताकि इसे देश की बदलती मध्यस्थता आवश्यकताओं के अनुरूप संशोधित किया जा सके

इसके विपरीत, वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने तर्क दिया कि यदि न्यायालयों को कुछ विशेष आधारों पर मध्यस्थ पुरस्कारों को निरस्त करने (set aside) का अधिकार है, तो उन्हें उसमें संशोधन (modification) करने का अधिकार भी होना चाहिए

वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नपाहडे ने दातार की बात से सहमति जताते हुए कहा कि न्यायालयों को मध्यस्थ पुरस्कारों में संशोधन करने की शक्ति होनी चाहिए

विवाद की पृष्ठभूमि

इस विवादास्पद कानूनी मुद्दे को 23 जनवरी को मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने बड़ी पीठ (Constitution Bench) के समक्ष भेजा था

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मध्यस्थता अधिनियम, 1996 भारतीय कानून के तहत विवादों के वैकल्पिक समाधान (alternative dispute resolution) का एक तरीका है, जिसका उद्देश्य न्यायालयों की दखलंदाजी को न्यूनतम करना है।

इस अधिनियम की धारा 34 (Section 34) में कुछ सीमित आधारों पर मध्यस्थ पुरस्कार को निरस्त (set aside) करने का प्रावधान है, जैसे प्रक्रियागत अनियमितता, सार्वजनिक नीति का उल्लंघन, या क्षेत्राधिकार की कमी

इसी प्रकार, धारा 37 (Section 37) मध्यस्थता से जुड़े न्यायिक आदेशों के खिलाफ अपील को नियंत्रित करती है। यह न्यायिक हस्तक्षेप को सीमित करते हुए अपवादस्वरूप मामलों में न्यायिक समीक्षा का अवसर प्रदान करती है

अब संविधान पीठ के निर्णय का इंतजार किया जा रहा है, जो कि भारत में मध्यस्थता कानून और न्यायिक अधिकार क्षेत्र की सीमाओं को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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