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सर्वोच्च न्यायालय ने सबूतों के अभावो में आईपीसी की धारा 302 के तहत एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को आईपीसी की धारा 304 के भाग I में बदल दिया

सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को आईपीसी की धारा 304 के भाग I में बदल दिया।

न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस निर्णय को चुनौती देने वाली एक आपराधिक अपील पर विचार कर रहा था, जिसमें उसने आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था।

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने कहा, “आरोपी व्यक्तियों और मृतक दोनों को लगी चोटों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि घटना आवेश में अचानक झगड़े के कारण हुई हो। … यह भी देखा जाना चाहिए कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह दर्शाता हो कि अपीलकर्ता ने अनुचित लाभ उठाया है या क्रूर या असामान्य तरीके से काम किया है। यह भी देखा जाना चाहिए कि इस्तेमाल किया गया हथियार एक पॉकेटनाइफ है। उक्त चाकू से लगी चोट एक ही चोट है।”

कोर्ट ने कहा की हमने अपीलकर्ता की ओर से विद्वान अधिवक्ता रुख्मिनी बोबडे और प्रतिवादी-राज्य की ओर से विद्वान वरिष्ठ एएजी सुश्री गरिमा प्रसाद की दलीलें सुनीं।

तथ्यात्मक पृष्ठभूमि –

1986 में एक लिखित रिपोर्ट दर्ज की गई थी, जिसमें कहा गया था कि पिछले विवाद के चलते अपीलकर्ता/अभियुक्त और उसके सह-अभियुक्त ने एक व्यक्ति (मृतक) को चाकू मार दिया था, जिसकी उसी दिन मृत्यु हो गई थी। इसके आधार पर अपीलकर्ता और उसके सह-अभियुक्त के खिलाफ धारा 302 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध के लिए एफआईआर दर्ज की गई थी। प्रारंभिक जांच के बाद पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया और अपीलकर्ता की निशानदेही पर पुलिस ने खून से सना चाकू बरामद किया, जिसका कथित तौर पर अपराध में इस्तेमाल किया गया था।

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गिरफ्तारी के समय दोनों आरोपियों के शरीर पर चोटें थीं। अभियोजन पक्ष के अनुसार घटना की तारीख से कुछ दिन पहले अपीलकर्ता ने मृतक के बड़े भाई की पत्नी से छेड़छाड़ की थी। ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता और सह-आरोपी को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इससे व्यथित होकर उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी सजा को बरकरार रखा। इसलिए, आरोपियों ने इसे सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी।

उपर्युक्त तथ्यों के मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, “इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि क्रम संख्या 1 पर लगी चोट को छोड़कर, जिसे चाकू से लगी चोट कहा जा सकता है, अन्य सभी चोटें घर्षण और चोट हैं।”

न्यायालय ने कहा कि इसलिए, हम पाते हैं कि परिस्थितियों की समग्रता में और, विशेष रूप से, अभियुक्तों द्वारा प्राप्त चोटों के कारण, अपीलकर्ता धारा 300 आईपीसी के अपवाद 4 के लाभ का हकदार है। इसलिए, हम वर्तमान अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करने के लिए इच्छुक हैं। तदनुसार आदेश दिया जाता है। धारा 302 आईपीसी के तहत अपीलकर्ता की सजा को धारा 304 आईपीसी के भाग-I के तहत बदल दिया जाता है। अपीलकर्ता को उक्त अपराध के लिए 8 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई जाती है। अपील को उपरोक्त शर्तों में आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है।

वाद शीर्षक – देवेन्द्र सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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