वक्फ कानून को नहीं रोकेगा सुप्रीम कोर्ट!…सुनवाई 15 मई तक टली
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2023 को लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई सोमवार, 15 मई को तय की गई है। इससे पूर्व की सुनवाई में न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार से कई तीखे और संवैधानिक प्रश्न पूछे थे। याचिकाओं में वक्फ संशोधन अधिनियम को भारत के संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 29 और 30 का उल्लंघन बताते हुए इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है।
याचिकाओं पर संक्षिप्त पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क प्रस्तुत किए, जबकि केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिए। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने सरकार से कठोर प्रश्न पूछते हुए स्पष्ट किया कि अगले आदेश तक वक्फ बोर्ड में कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी और वर्तमान स्थिति को यथावत रखा जाएगा। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सुनवाई केवल पांच चयनित याचिकाओं पर केंद्रित रहेगी।
संवैधानिक आधार जिन पर कानून को चुनौती दी गई है:
1. अनुच्छेद 25 – धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि नया वक्फ कानून भारत के प्रत्येक नागरिक को प्राप्त धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है। उनके अनुसार:
- राज्य किसी भी धार्मिक आस्था, आचार, उपासना या प्रचार में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
- वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का प्रावधान धार्मिक समुदायों के आंतरिक मामलों में सरकारी दखल है।
2. अनुच्छेद 26 – धार्मिक संस्थानों का संचालन
इस अनुच्छेद के तहत प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय को अपने धार्मिक संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन का अधिकार है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि नया कानून वक्फ बोर्ड जैसे धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन में राज्य के हस्तक्षेप को बढ़ावा देता है, जो इस अनुच्छेद के विपरीत है।
3. अनुच्छेद 29 और 30 – अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार
- अनुच्छेद 29 धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति और परंपरा को बनाए रखने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और संचालन का अधिकार है, जिसमें सरकार किसी प्रकार का भेदभाव नहीं कर सकती।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए तीन प्रमुख प्रश्न:
1. क्या वक्फ संपत्तियों को डिनोटिफाई किया जा सकता है?
कोर्ट ने पूछा कि जिन संपत्तियों को पूर्व में वक्फ घोषित किया गया है या जिन पर मुकदमे विचाराधीन हैं, क्या उन्हें अब वक्फ से बाहर किया जा सकता है? यह वक्फ की कानूनी स्थिति को प्रभावित कर सकता है।
2. कलेक्टर को संपत्ति विवाद में प्राथमिक जांचकर्ता बनाना क्या वैध है?
संशोधित अधिनियम के तहत विवाद की स्थिति में कलेक्टर को जांच का अधिकार दिया गया है। अदालत ने इस पर सवाल उठाया कि क्या कलेक्टर को वक्फ संपत्तियों की जांच और पुनर्निर्धारण का अधिकार देना न्यायसंगत है, खासकर जब संबंधित पक्ष ट्रिब्यूनल का सहारा भी ले सकते हैं।
3. क्या वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति संवैधानिक है?
नए अधिनियम में गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में नामित सदस्य के रूप में नियुक्त करने का प्रावधान है। याचिकाकर्ताओं ने इसे असंवैधानिक बताया और कहा कि जैसे हिंदू मंदिर ट्रस्टों और सिख गुरुद्वारों के प्रबंधन में केवल संबंधित धर्मावलंबियों को ही नियुक्त किया जाता है, वैसे ही वक्फ बोर्ड में भी केवल मुस्लिम सदस्य होने चाहिए।
वक्फ बाय यूजर की अवधारणा को हटाने पर चिंता:
अदालत ने यह भी प्रश्न उठाया कि संशोधित अधिनियम से ‘वक्फ बाय यूजर’ की अवधारणा को क्यों हटाया गया है। यह चिंता विशेष रूप से उन प्राचीन मस्जिदों और दरगाहों को लेकर है, जो 14वीं–16वीं शताब्दी की हैं और जिनके पास भूमि का कोई पंजीकृत दस्तावेज नहीं है। इन संपत्तियों की स्थिति स्पष्ट नहीं होने पर उनका संरक्षण कैसे होगा, यह न्यायालय के लिए एक गंभीर विषय है।
केंद्र सरकार की दलील:
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि:
- पहले वक्फ अधिनियम, 1923 में भी संपत्ति के पंजीकरण की अनिवार्यता थी।
- संपत्ति सरकारी पाए जाने पर राजस्व रिकॉर्ड में संशोधन होगा।
- कोई भी पक्ष ट्रिब्यूनल के समक्ष अपील कर सकता है यदि वह कलेक्टर के निर्णय से असहमत हो।
भारत में वक्फ संपत्तियों की स्थिति:
- 8.65 लाख एकड़ से अधिक वक्फ संपत्तियां देशभर में फैली हुई हैं।
- इनका अनुमानित मूल्य ₹1.2 लाख करोड़ से अधिक है।
- यह आंकड़ा भारतीय रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद तीसरा सबसे बड़ा सार्वजनिक भूमि स्वामित्व है।
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