सर्वोच्च न्यायलय ने इलाहाबाद उच्च न्यायलय को जोर देकर कहा की पहले बैकलॉग क्लियर करें फिर मुख्य मामले में सुनवाई करें-

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हमारी प्रथम चिंता न्यायिक व्यवस्था को लेकर है। उच्चतम न्यायलय ने कहा कि जिन लोगों ने आवश्यक सजा पूरी कर ली है, चाहे उन्हें छूट दी गई हो लेकिन यहां हम जिस चीज से चिंतित हैं वह यह है कि लोग कई साल से बिना जमानत के तड़प रहे हैं।

इलाहाबाद उच्च न्यायलय में लंबे समय से लंबित आपराधिक अपील का माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा है कि वो इस संबंध में गाइडलाइन जारी करेगा।

सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि किन परिस्थितियों में अदालत को दोषियों को जमानत देने पर विचार करना चाहिए। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से अपने हलफनामे में दिए गए सुझाव बोझिल बताया है।

उत्तर प्रदेश में दोषियों की जमानत याचिका पर सुनवाई में देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार के सुझाव में परोल पर उत्तर प्रदेश जेल की स्थायी नीति में बदलाव भी शामिल है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हमारी चिंता न्यायिक व्यवस्था को लेकर है-

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हमारी प्रथम चिंता न्यायिक व्यवस्था को लेकर है। उच्चतम न्यायलय ने कहा कि जिन लोगों ने आवश्यक सजा पूरी कर ली है, चाहे उन्हें छूट दी गई हो लेकिन यहां हम जिस चीज से चिंतित हैं वह यह है कि लोग कई साल से बिना जमानत के तड़प रहे हैं।

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सर्वोच्च अदालत का कहना है की उत्तर प्रदेश में अपील पर कई साल तक सुनवाई नहीं होती। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के प्रशासन को फटकार भी लगाई और कहा कि प्रासंगिक समय पर, एक बेंच के समक्ष 15 से 20 नई अपील होती हैं। आप मामलों को लंबित नहीं रख सकते।

सर्वोच्च न्यायलय ने जोर देकर कहा की पहले बैकलॉग क्लियर करें फिर मुख्य मामले में सुनवाई करें-

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि सजा के निलंबन की याचिका लंबित न रखें। हाईकोर्ट व्यक्ति को अनिश्चित काल के लिए जेल में नहीं रख सकता।

शीर्ष अदालत का कहना है की आपकी समस्या विशिष्ट है। कई अन्य हाईकोर्ट में ये कोई समस्या नहीं है। आपको एक सिस्टम तैयार करना होगा। यह एक विशिष्ट मुद्दा है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए आपको कोई समाधान निकालना ही होगा। क्या हमें डेटा मांगना चाहिए कि हर दिन कितनी अपीलें सुनी जाती हैं?

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 26 जुलाई 2021 को ये विचार किया था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित अपीलों को न्यायालय की ओर से तय किए गए व्यापक मानकों पर परखा जाना चाहिए।

कोर्ट ने ये सुझाव भी दिया था कि अवधि, अपराध की जघन्यता, अभियुक्त की आयु, ट्रायल में लगने वाली अवधि और क्या अपीलकर्ता अपील पर लगन से मुकदमा लड़ रहे हैं?

उच्च न्यायलय इलाहाबाद को इन सबके आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कोर्ट से अनुरोध किया था कि वे सुझाव देते हुए नोट प्रस्तुत करेंगी जिसे उच्च न्यायालय की ओर से ही अपनाया जा सकता है। न्यायालय ने तत्काल 18 मामलों के लिए सुझाव भी मांगे थे।

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