सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से छह सप्ताह में मांगा जवाब
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। यह याचिका सोशल मीडिया अकाउंट्स या पोस्ट को बिना नोटिस जारी किए ब्लॉक करने की प्रक्रिया को चुनौती देती है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि सरकार की ओर से दिए गए निर्देशों के आधार पर X (पूर्व में ट्विटर) जैसे प्लेटफॉर्म बिना पूर्व सूचना के यूजर्स की पोस्ट हटा देते हैं, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
सुनवाई के दौरान मुख्य बिंदु
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने केंद्र सरकार से इस मामले में छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। याचिका सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (Software Freedom Law Centre) ने दायर की है।
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह, जो याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुईं, ने दलील दी कि सरकार को जानकारी हटाने का अधिकार है, लेकिन पोस्ट करने वाले व्यक्ति को नोटिस देना आवश्यक है। बिना सूचना के पोस्ट हटाना न्यायिक प्रक्रिया के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है।
उन्होंने आगे कहा कि मौजूदा कानून के अनुसार या तो व्यक्ति को या फिर उस प्लेटफॉर्म (इंटरमीडियरी) को नोटिस जारी किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की प्रारंभिक टिप्पणी
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्रारंभिक रूप से यह राय व्यक्त की कि अगर किसी पोस्ट के पीछे कोई पहचाने जाने योग्य व्यक्ति है, तो उसे पोस्ट हटाने से पहले सुना जाना चाहिए।
आईटी नियम 2009 की कुछ धाराओं को दी गई चुनौती
याचिका में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) के तहत बने “सूचना तक सार्वजनिक पहुंच को अवरुद्ध करने की प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय” नियम, 2009 (Information Technology (Procedure and Safeguards for Blocking for Access of Information by Public) Rules, 2009) की कुछ धाराओं को चुनौती दी गई है।
हालांकि, जयसिंह ने स्पष्ट किया कि याचिका का उद्देश्य सरकार के पास मौजूद IT अधिनियम की धारा 69A के तहत पोस्ट हटाने के अधिकार को चुनौती देना नहीं है। बल्कि, मुद्दा यह है कि पोस्ट करने वाले व्यक्ति को बिना नोटिस दिए जानकारी को ब्लॉक करना कानून के खिलाफ है।
अब इस मामले में केंद्र सरकार को छह सप्ताह में अपना जवाब दाखिल करना होगा, जिसके बाद आगे की सुनवाई होगी।
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