“व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामले में 27 बार टालमटोल बर्दाश्त नहीं”: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की खिंचाई करते हुए आरोपी को दी जमानत

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“व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामले में 27 बार टालमटोल बर्दाश्त नहीं”: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की खिंचाई करते हुए आरोपी को दी जमानत

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट को जमकर फटकार लगाई, जब यह सामने आया कि एक आरोपी की जमानत याचिका पर 27 बार सुनवाई टाली जा चुकी थी।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने हाईकोर्ट के इस रवैये पर तीखी टिप्पणी करते हुए आरोपी को सीधे जमानत दे दी।

मुख्य न्यायाधीश गवई ने तल्ख लहजे में कहा, “व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामले में हाईकोर्ट 27 बार कुछ नहीं कर सका, तो 28वीं बार हम उससे क्या उम्मीद करें?” उन्होंने यह भी जोड़ा कि अदालतों से ऐसी उदासीनता की अपेक्षा नहीं की जाती, खासकर तब जब व्यक्ति चार वर्षों से जेल में बंद हो और शिकायतकर्ता का बयान तक दर्ज हो चुका हो।

वरिष्ठ अधिवक्ता सुंदर खत्री ने बताया कि सुनवाई के दौरान सीजेआई गवई ने स्पष्ट रूप से कहा, “इस तरह की टालमटोल से व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की हत्या होती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जमानत याचिका हाईकोर्ट में इतनी बार सूचीबद्ध हुई लेकिन हर बार स्थगित कर दी गई।”

CBI ने जताया विरोध, सुप्रीम कोर्ट ने फिर भी दी राहत

सुनवाई के दौरान CBI ने आरोपी की जमानत का विरोध करते हुए कहा कि वह 33 अन्य मामलों में भी शामिल है। लेकिन पीठ ने इस तर्क को दरकिनार करते हुए कहा कि आरोपी पहले ही चार साल, तीन महीने और 24 दिन से जेल में है, और इस दौरान हाईकोर्ट ने सिर्फ तारीखें दीं, कोई फैसला नहीं लिया।

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यह मामला हाईकोर्ट के 20 मार्च, 2025 के आदेश के खिलाफ दायर किया गया था, जिसमें कोर्ट ने सुनवाई को दो सप्ताह के लिए स्थगित करते हुए शिकायतकर्ता के साक्ष्य दर्ज करने का निर्देश दिया था। याचिकाकर्ता पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत आरोप लगाए गए हैं।

पीठ ने क्यों लिया यह रुख

सुप्रीम कोर्ट ने 21 अप्रैल, 2025 को ही इस मामले में नोटिस जारी किया था, यह कहते हुए कि आरोपी की जमानत याचिका को 27 बार टालना न्यायिक प्रक्रिया का मज़ाक है। जब मामले की सुनवाई हुई तो याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि 28वीं बार मामला सूचीबद्ध होने जा रहा है।

इस पृष्ठभूमि में, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए आरोपी को जमानत दी कि, “मामले की विशेष परिस्थितियों और लंबे समय से विचाराधीन स्थिति को देखते हुए, हम याचिकाकर्ता को जमानत देने के इच्छुक हैं।”

यह आदेश न्यायिक प्रक्रिया में समयबद्धता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार के महत्व को रेखांकित करता है।

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