सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि प्रयागराज में एक वकील, एक प्रोफेसर और अन्य व्यक्तियों के घरों को बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए गिराना गंभीर मामला है।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति एन. कोटिस्वर सिंह की पीठ ने राज्य सरकार की कार्रवाई को चौंकाने वाला और गलत संकेत देने वाला बताया।
न्यायालय की कड़ी टिप्पणी: “अनुच्छेद 21 और आवास के अधिकार का भी कोई अस्तित्व है”
कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई के दौरान स्पष्ट रूप से कहा कि, “आखिर अनुच्छेद 21 और आवास के अधिकार (Right to Shelter) जैसी चीजें भी होती हैं।” राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि तोड़े गए घरों पर पहले नोटिस चस्पा किए गए थे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के तर्क को “अत्यधिक तकनीकी” (Hyper-technical) बताते हुए खारिज कर दिया और कहा कि अदालत जानती है कि ऐसे मामलों से कैसे निपटना है।
कोर्ट ने राज्य सरकार की कार्रवाई को “मनमानी” और “अत्यधिक कठोर” बताते हुए इसे एकतरफा विध्वंस करार दिया।
याचिकाकर्ताओं का पक्ष: महज एक रात पहले दिया गया था नोटिस
यह मामला अधिवक्ता जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और तीन अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर याचिका से संबंधित है। उन्होंने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि मार्च 2021 में उनके घर गिराने से महज एक रात पहले उन्हें नोटिस दिया गया था।
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिमन्यु भंडारी, जो याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार के अधिकारियों ने गलती से याचिकाकर्ताओं की भूमि को माफिया अतीक अहमद की संपत्ति समझ लिया, जो 2023 में मारे गए थे। उन्होंने कहा कि राज्य को अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए।
कोर्ट ने की पुनर्निर्माण की सिफारिश
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से सवाल किया कि नोटिस चस्पा करने के बजाय उन्हें कानून के तहत कूरियर से क्यों नहीं भेजा गया। कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा कि जो घर तोड़े गए हैं, उन्हें फिर से बनाया जाना चाहिए।
कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा, “यदि आप हलफनामा दाखिल करके मुकदमे को लंबा खींचना चाहते हैं, तो यह आपकी मर्जी है, अन्यथा कम अपमानजनक तरीका यही होगा कि आप पहले मकानों को फिर से बनवाएं और फिर कानूनी रूप से उचित नोटिस जारी करें।”
इस मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता रोहिणी दुआ ने पैरवी की।
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