सुप्रीम कोर्ट ने आज गुजरात प्रशासन के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेशों का कथित रूप से उल्लंघन कर संपत्तियों को गिराने के मामले में दायर की गई थी।
हालांकि, जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने याचिकाकर्ता को संबंधित उच्च न्यायालय में जाने की अनुमति दे दी।
उच्च न्यायालय जाने की सलाह
पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, “आप उच्च न्यायालय क्यों नहीं जाते?”
न्यायालय ने यह भी कहा, “हर मामले में हमारे लिए यहां से निगरानी रखना मुश्किल होगा।”
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि प्रशासन द्वारा गिराए गए मकान निजी भूमि पर स्थित थे।
इसके बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए कहा, “हम इस याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं।”
क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट गुजरात सरकार के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि राज्य प्रशासन ने शीर्ष अदालत के 13 नवंबर 2024 के फैसले का उल्लंघन किया।
इस फैसले में देशव्यापी दिशानिर्देश जारी किए गए थे, जिनके तहत बगैर कारण बताओ नोटिस और प्रभावित पक्ष को 15 दिन का जवाब देने का अवसर दिए बिना कोई भी अतिक्रमण या संपत्ति ध्वस्त नहीं की जा सकती।
बिना नोटिस तोड़े गए मकान: याचिकाकर्ता का आरोप
वरिष्ठ अधिवक्ता पारस नाथ सिंह द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया कि अहमदाबाद नगर निगम के अधिकारियों ने उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना और सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हुए तीन घर और एक शेड ध्वस्त कर दिया।
याचिका में कहा गया, “प्रशासनिक अधिकारियों ने मकान गिराने से पहले कोई पूर्व नोटिस जारी नहीं किया।”
याचिकाकर्ता, जो कि गुजरात में अल्पसंख्यक समन्वय समिति (Minority Coordination Committee) के संयोजक हैं, ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेशों के बावजूद अधिकारियों ने दिसंबर 2024 में अहमदाबाद में तीन मकानों को ध्वस्त कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का 2024 का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 13 नवंबर 2024 के फैसले में स्पष्ट किया था कि उसके द्वारा दिए गए दिशा-निर्देश सार्वजनिक स्थानों पर स्थित अवैध निर्माणों पर लागू नहीं होंगे। इनमें सड़क, फुटपाथ, रेलवे लाइन के किनारे या जल स्रोतों के निकट स्थित अवैध निर्माण शामिल हैं।
हालांकि, जहां विधिक आदेश के तहत विध्वंस किया जाना है, वहां यह नियम लागू नहीं होंगे।
फैसले में यह भी कहा गया था:
“बगैर कारण बताओ नोटिस के कोई भी विध्वंस नहीं किया जाएगा। नोटिस का जवाब देने की समय-सीमा या तो स्थानीय नगर पालिका कानूनों के अनुसार होगी या फिर 15 दिन की अवधि, जो भी बाद में लागू हो, दी जाएगी।”
यह फैसला देशभर में संपत्तियों के विध्वंस के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया था।
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