Supreme Court का HC के निर्णय में दखल से इंकार DDA के अवैध निर्माण गिराने पर मानवीय आधार पर लगाई 7 दिन की रोक

Supreme Court का HC के निर्णय में दखल से इंकार DDA के अवैध निर्माण गिराने पर मानवीय आधार पर लगाई 7 दिन की रोक

शीर्ष अदालत ने अवैध निर्माण ढहाने के दिल्ली उच्च न्यायलय के निर्णय में दखल देने से किया इन्कार करते हुए कहा कि मानवीय आधार पर लोगों को जगह खाली करने के लिए सात दिन का समय दिया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के विश्वास नगर के कस्तूरबा नगर में अवैध घरों को ढहाए जाने के लिए चल रहे डीडीए के अभियान पर सात दिन के लिए रोक लगा दी है ताकि वहां रहने वाले लोग जगह खाली कर सकें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह ये आदेश मानवीय आधार पर जारी कर रहा है अगर ये लोग 29 मई तक जगह खाली नहीं करते तो डीडीए को अन्य एजेंसियों की मदद से अवैध निर्माण ढहाने का अभियान फिर शुरू कर सकता है।

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति संजय करोल की अवकाश पीठ ने, हालांकि, दिल्ली उच्च न्यायलय की एकल और खंडपीठों के आदेशों में डीडीए को अतिक्रमण हटाने के लिए आगे बढ़ने की अनुमति देने में कोई गलती नहीं पाई। पीठ ने डीडीए की वकील सुनीता ओझा से कहा, जुलाई के दूसरे सप्ताह में इस मुद्दे पर विचार किया जाएगा कि क्या जिन लोगों के घरों को हटाया जा रहा है वे दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड अधिनियम या किसी अन्य कानून के तहत पुनर्वास के हकदार हैं कि नहीं।

सर्वोच्च्च न्यायलय पीठ ने आदेश में कहा, हमें बताया गया है कि आज सुबह 8 बजे से घरों को ढहाने का काम शुरू हुआ है। जहां तक याचिकाकर्ता सदस्यों के अपने वर्तमान निवास स्थान पर रहने के अधिकार का संबंध है, हम दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। मानवीय आधार पर, हम उन्हें 29 मई तक संबंधित परिसर खाली करने के लिए सात दिन का समय देते हैं। इसके बाद डीडीए वहां घर गिराने के लिए स्वतंत्र होगा।

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पीठ ने डीडीए की वकील को आदेश के संबंध में अधिकारियों को सूचित करने का निर्देश दिया ताकि विध्वंस अभियान तुरंत रोका जा सके।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश पूर्वी दिल्ली के विश्वास नगर इलाके के अंतर्गत आने वाले कस्तूरबा नगर इलाके के कुछ निवासियों की याचिका पर आया। इन लोगों ने याचिका में डीडीए के 18 मई को जारी विध्वंस नोटिसों पर सवाल उठाए हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस साल 14 मार्च को डीडीए के विध्वंस के कदम को रोकने से मना कर दिया था, जबकि जमीन के मालिक हक वाली एजेंसी की दलील से सहमत थे कि निवासी अतिक्रमणकारी थे।

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