सुप्रीम कोर्ट ने अवैध रोहिंग्या प्रवासियों के निर्वासन में हस्तक्षेप से इनकार
भारत में कहीं भी रहने और बसने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों के लिए संविधान में सुरक्षित है। अदालत ने यह भी दोहराया कि गैर-नागरिकों की स्थिति और गतिविधियों को विदेशी अधिनियम के तहत नियंत्रित किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 8 मई को एक महत्वपूर्ण आदेश में स्पष्ट किया कि भारत में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या मुस्लिम प्रवासियों को विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत निष्कासित किया जा सकता है, यदि वे भारतीय कानूनों के अनुसार विदेशी पाए जाते हैं। अदालत ने रोहिंग्या निर्वासन में किसी भी प्रकार के तत्काल हस्तक्षेप से इनकार कर दिया।
⚖️ याचिकाकर्ताओं की अपील: नरसंहार के खतरे का हवाला
वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस और अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने शीर्ष अदालत के समक्ष तत्काल सुनवाई की मांग करते हुए यह तर्क दिया कि रोहिंग्या समुदाय को म्यांमार की सेना द्वारा नरसंहार का सामना करना पड़ा है, और वे शरणार्थी के रूप में भारत में रहने के अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त अधिकार के पात्र हैं। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त (UNHCR) द्वारा जारी शरणार्थी कार्ड इस मान्यता का प्रमाण हैं।
🧑⚖️ पीठ का फैसला: भारत में निवास का अधिकार केवल नागरिकों के लिए
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि भारत में कहीं भी रहने और बसने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों के लिए संविधान में सुरक्षित है। अदालत ने यह भी दोहराया कि गैर-नागरिकों की स्थिति और गतिविधियों को विदेशी अधिनियम के तहत नियंत्रित किया जाएगा।
🧾 केंद्र का पक्ष: राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और केंद्र सरकार के अधिवक्ता कनु अग्रवाल ने अदालत को बताया कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही असम और जम्मू-कश्मीर से रोहिंग्याओं के निर्वासन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर चुका है। उन्होंने कहा कि रोहिंग्याओं की मौजूदगी भारत की आंतरिक सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों के लिए चिंता का विषय है।
सरकार ने स्पष्ट किया कि भारत संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन का पक्षकार नहीं है और यूएनएचसीआर द्वारा जारी किए गए शरणार्थी कार्डों को कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं माना जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि रोहिंग्याओं को भारत सरकार ने शरणार्थी के रूप में मान्यता नहीं दी है, और वे अवैध प्रवासी हैं।
📌 अनुच्छेद 21 लागू, परंतु विदेशी का दर्जा बरकरार
हालांकि पीठ ने यह स्वीकार किया कि अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) भारत में हर व्यक्ति पर लागू होता है, चाहे वह नागरिक हो या विदेशी, फिर भी अदालत ने यह स्पष्ट किया कि रोहिंग्या विदेशी माने गए हैं और उनकी स्थिति से निपटने में प्रचलित वैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किया जाएगा।
⏳ आगे की सुनवाई जुलाई में
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 31 जुलाई 2025 के लिए निर्धारित करते हुए फिलहाल निर्वासन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि यदि निर्वासन की प्रक्रिया शुरू होती है, तो उचित प्रक्रिया के सिद्धांतों का पालन किया जाएगा।
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