सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को किया निरस्त: जमानत याचिका में सीबीआई जांच के निर्देश अवैध करार

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सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को किया निरस्त: जमानत याचिका में सीबीआई जांच के निर्देश अवैध करार

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के उस निर्देश को निरस्त कर दिया, जिसमें जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान सीबीआई को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C) की धारा 161 के तहत दिए गए बयान के आधार पर मामला दर्ज करने का आदेश दिया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि:
उत्तर प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। हाई कोर्ट ने सीबीआई निदेशक को निर्देश दिया था कि वे डॉ. उमाकांत द्वारा Cr.P.C की धारा 161 के तहत दिए गए बयान के आधार पर मामला दर्ज कर जांच करें। यह आदेश एक जमानत याचिका के संदर्भ में पारित किया गया था।

न्यायालय की टिप्पणी:
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने कहा:

“हम मानते हैं कि Cr.P.C की धारा 161 के तहत दिए गए बयान या न्यायालय में उपस्थित जांच अधिकारी के बयान में कोई असाधारण परिस्थिति नहीं दिखाई गई है। इसके अलावा, कोई भी पूर्व उदाहरण ऐसा नहीं है जिससे यह स्थापित हो कि जमानत याचिका में इस तरह का निर्देश दिया जा सकता है।”

इस मामले में, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज ने याचिकाकर्ता (उत्तर प्रदेश सरकार) का पक्ष रखा, जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता जी. उमापति ने प्रतिवादी की ओर से दलीलें प्रस्तुत कीं।

दलीलें:

  • राज्य सरकार के वकील ने तर्क दिया कि जमानत याचिका में इस प्रकार के निर्देश देना अवैध है, और सुप्रीम कोर्ट पहले भी इस प्रकार के निर्देशों की निंदा कर चुका है।
  • राज्य सरकार ने यह भी बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 2022 और 2023 में केंद्र सरकार से सीबीआई जांच की मांग की थी, लेकिन केंद्र ने यह कहते हुए असमर्थता व्यक्त की थी कि यह व्यावहारिक रूप से संभव नहीं होगा।
  • इसके अलावा, अब तक राज्य पुलिस की जांच काफी आगे बढ़ चुकी थी, और इस चरण में जांच एजेंसी बदलना राज्य पुलिस के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता था।
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न्यायालय का तर्क:
खंडपीठ ने State Represented by Inspector of Police v. M. Murugesan (2020) के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि:

“जमानत याचिका पर निर्णय लेने के बाद हाई कोर्ट का क्षेत्राधिकार समाप्त हो जाता है। इसके बाद किसी प्रकार के निर्देश देना, जैसे कि जांच की गुणवत्ता सुधारने के लिए समिति बनाने का आदेश, Cr.P.C की धारा 439 के तहत न्यायालय की अधिकार सीमा से बाहर है।”

इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने Seemant Kumar Singh v. Mahesh PS (2023) और Union of India Thr. I.O. Narcotics Control Bureau v. Man Singh Verma (2025) मामलों का संदर्भ देते हुए कहा कि:

“न्यायालयों द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर दिए गए निर्देशों को हमेशा आलोचना का सामना करना पड़ा है।”

फैसला:

  • सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जमानत याचिका में इस तरह के निर्देश देने का कोई आधार नहीं था।
  • Cr.P.C की धारा 161 के तहत दिए गए बयान में कोई असाधारण तथ्य नहीं पाए गए, जो इस आदेश को उचित ठहराते।
  • हाई कोर्ट के आदेश का केवल वह हिस्सा निरस्त किया गया, जिसमें सीबीआई को मामला दर्ज करने के निर्देश दिए गए थे।
  • बचाव पक्ष को मिली जमानत पर राज्य सरकार की कोई आपत्ति नहीं थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के मुद्दे पर कोई हस्तक्षेप नहीं किया।

निष्कर्ष:
इस निर्णय से सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया कि जमानत याचिका में जांच एजेंसियों को कोई नया मामला दर्ज करने का आदेश नहीं दिया जा सकता। यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया में सीमा-निर्धारण (Jurisdictional Limits) के महत्व को दर्शाता है और न्यायालयों द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाने के खतरों को इंगित करता है।

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वाद शीर्षक – State of Uttar Pradesh v. Dr. Ritu Garg & Ors.

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