CJI की महाराष्ट्र यात्रा को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार, याचिकाकर्ता पर ₹7,000 का जुर्माना

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“CJI की महाराष्ट्र यात्रा को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार, याचिकाकर्ता पर ₹7,000 का जुर्माना”

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिकाकर्ता पर ₹7,000 का जुर्माना लगाया जिसने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई की महाराष्ट्र यात्रा के दौरान प्रोटोकॉल उल्लंघन को लेकर जनहित याचिका (PIL) दाखिल की थी। याचिका को खारिज करते हुए CJI गवई की अगुवाई वाली पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह याचिका “जनहित” नहीं, बल्कि “प्रचार हित” में दाखिल की गई थी और इसका उद्देश्य “सस्ती लोकप्रियता” पाना था।

क्या थी याचिका की मांग?
याचिका में भारत सरकार और महाराष्ट्र राज्य को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि वे 18 मई को महाराष्ट्र में CJI गवई के स्वागत समारोह के दौरान राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों की अनुपस्थिति की जांच करें। याचिकाकर्ता ने इसे “संविधानिक गरिमा का उल्लंघन” बताया और उच्च अधिकारियों की अनुपस्थिति को “दुर्व्यवहार” करार दिया।

CJI ने स्वयं क्या कहा था?
18 मई को एक सार्वजनिक समारोह में, CJI गवई ने वरिष्ठ अधिकारियों की अनुपस्थिति पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा था:
“हम कहते हैं कि लोकतंत्र के तीन स्तंभ – न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका – समान हैं। हर संवैधानिक अंग को दूसरे का सम्मान करना चाहिए। एक व्यक्ति, जो महाराष्ट्र से है, देश का मुख्य न्यायाधीश बनकर पहली बार राज्य आया है। अगर राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक या मुंबई पुलिस आयुक्त को यह आवश्यक नहीं लगता कि वे आएं, तो यह उन पर निर्भर करता है कि वे इस पर विचार करें।”

कोर्ट की टिप्पणी:
आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि CJI के उक्त वक्तव्य के वायरल होने के बाद संबंधित अधिकारी उनसे मिलने पहुंचे, उन्होंने माफी मांगी, और कुछ ने सार्वजनिक रूप से भी क्षमा याचना की। बाद में, वे CJI को डॉ. बी. आर. अंबेडकर को श्रद्धांजलि देने और एयरपोर्ट तक भी साथ गए।

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कोर्ट ने कहा, “जब संबंधित अधिकारियों ने व्यक्तिगत रूप से माफी मांग ली, और अन्य अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से खेद प्रकट किया, तब यह मामला वहीं समाप्त हो जाना चाहिए था। बावजूद इसके, याचिकाकर्ता ने मुकदमा आगे बढ़ाया। हम ऐसी प्रवृत्तियों की कड़ी निंदा करते हैं।”

CJI की पीठ की सख्त टिप्पणी:
“मुख्य न्यायाधीश ने स्वयं यह स्पष्ट किया था कि उन्हें व्यक्तिगत सम्मान से अधिक उस पद की गरिमा की चिंता है, जिसे वे धारण करते हैं। इसके बाद भी उन्होंने सलाह दी थी कि ऐसी छोटी-छोटी बातों को तूल न दिया जाए। फिर भी इस मुद्दे को अनावश्यक रूप से अदालत में घसीटा गया।”

अंततः सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर ₹7,000 का जुर्माना लगाया और कहा कि इस तरह की याचिकाएं न्यायिक संसाधनों का दुरुपयोग हैं।

यह आदेश न्यायपालिका की गरिमा की रक्षा और जनहित याचिकाओं के नाम पर हो रहे दुरुपयोग के विरुद्ध एक स्पष्ट संदेश के रूप में देखा जा रहा है।

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