न्यायपालिका में महिला भागीदारी को बढ़ावा: सुप्रीम कोर्ट ने एसटी महिला न्यायिक अधिकारी को सेवा में बहाल किया

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“न्यायपालिका में महिला भागीदारी को बढ़ावा: सुप्रीम कोर्ट ने एसटी महिला न्यायिक अधिकारी को सेवा में बहाल किया”

कारण बताओ नोटिस और बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही उन्होंने सभी परिणामी लाभों के साथ नियुक्ति को बहाल करने का निर्देश दिया


⚖️ महत्वपूर्ण टिप्पणी: महिला न्यायाधीशों की भागीदारी लैंगिक समानता की कुंजी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि न्यायपालिका में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी न केवल संस्थागत विविधता को बढ़ाती है, बल्कि व्यापक रूप से लैंगिक समानता को भी प्रोत्साहित करती है।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने एक अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग की महिला को सिविल न्यायाधीश, कनिष्ठ वर्ग एवं प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में सेवा में बहाल करते हुए, कारण बताओ नोटिस और बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही उन्होंने सभी परिणामी लाभों के साथ नियुक्ति को बहाल करने का निर्देश दिया।


📜 पृष्ठभूमि: नियुक्ति, विवाद और याचिका

पीड़िता ने वर्ष 2018 में सिविल न्यायाधीश कैडर के लिए आवेदन किया था। उन्होंने प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार उत्तीर्ण किया और 2019 में एसटी (महिला) श्रेणी में चौथा स्थान प्राप्त किया।

हालांकि, चरित्र सत्यापन के दौरान, उनके पूर्व विवाह और तलाक को लेकर सवाल उठाए गए। इस आधार पर उन्हें कारण बताओ नोटिस भेजा गया और बाद में यह आरोप लगाकर सेवा से मुक्त कर दिया गया कि उन्होंने गलत जानकारी दी है और उनका चरित्र/पूर्ववृत्त संतोषजनक नहीं है।

पीड़िता का तर्क था कि उनका तलाक निजी मामला है और इसका न्यायिक कार्यक्षमता या चरित्र से कोई संबंध नहीं है।

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🧾 सुप्रीम कोर्ट की कानूनी दृष्टि और विश्लेषण

पीठ ने स्पष्ट किया:

“यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें याचिकाकर्ता ने आपराधिक पृष्ठभूमि को छुपाया हो। अधिक से अधिक, यह एक मामूली चूक मानी जा सकती है, जिसके लिए उन्हें ‘पूंजी दंड’ देना न्यायसंगत नहीं है।”

न्यायालय ने आगे कहा कि:

  • नियुक्ति के समय पीड़िता सरकारी सेवा में नहीं थीं, इसलिए पूर्व सेवा की जानकारी देना अनिवार्य नहीं था।
  • नियुक्ति के बाद यदि कोई गंभीर कदाचार सिद्ध न हो, तो सेवा समाप्ति को सरल बर्खास्तगी (termination simpliciter) माना जाएगा, न कि कलंकित बर्खास्तगी

👩‍⚖️ महिला न्यायिक अधिकारियों की भूमिका पर पीठ की टिप्पणी

न्यायालय ने कहा कि:

“महिला न्यायिक अधिकारियों की अधिक संख्या और दृश्यता:

  • लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ती है।
  • अन्य निर्णयकारी संस्थाओं में महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनती है।
  • महिलाओं को न्यायालय में आने और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सशक्त बनाती है।”

🧑‍⚖️ आदेश और परिणामी प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट ने अंततः यह आदेश पारित किया:

  • 17 फरवरी 2020 का कारण बताओ नोटिस और 29 मई 2020 का बर्खास्तगी आदेश रद्द।
  • याचिकाकर्ता को तत्काल प्रभाव से सेवा में बहाल किया जाए।
  • उन्हें सीनियरिटी और वेतन निर्धारण का लाभ मिलेगा, लेकिन बकाया वेतन नहीं मिलेगा।
  • उन्हें प्रशिक्षण काल पूर्ण माना जाए और पक्की नियुक्ति दी जाए।

🧾 मामले का विवरण

  • मामला: पिंकी मीणा बनाम राजस्थान उच्च न्यायालय व अन्य
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