सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालयों को Article 226 रिट पेटिशन का निपटारा करते समय चुनौती देने के आधार पर अपना दिमाग लगाना चाहिए-

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालयों को Article 226 रिट पेटिशन का निपटारा करते समय चुनौती देने के आधार पर अपना दिमाग लगाना चाहिए-

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 13 .01.2022 को उड़ीसा हाईकोर्ट Orissa High Court के आदेश का विरोध करने वाली एक विशेष अनुमति याचिका Special leave Petition पर विचार करते हुए कहा कि, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 Article 226 of Indian Constitution के तहत दायर याचिका Petition पर विचार करते हुए हाईकोर्ट को याचिका में दी गई चुनौती के आधार को गंभीरता से देखना चाहिए और उस पर अपना दिमाग लगाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने चुनौती के आधार पर अपना दिमाग लगाए बिना रिट याचिका Writ petition का निपटारा करने के लिए हाईकोर्ट की कार्यवाही की आलोचना की।

उड़ीसा हाईकोर्ट ने निम्नलिखित आदेश पारित करके उड़ीसा प्रशासनिक न्यायाधिकरण Orissa Administrative Tribunal के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था। पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ता को सुना। इस रिट याचिका के माध्यम से याचिकाकर्ताओं ने 2008 के आदेश संख्या 163 में उड़ीसा प्रशासनिक न्यायाधिकरण, भुवनेश्वर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 14.11.2012 को चुनौती दी है। विरोधी पक्ष को ध्यान में रखते हुए जो तीन दशकों से काम कर रहा है, ट्रिब्यूनल के निष्कर्षों में दखल देना हमारे लिए उचित नहीं होगा। तदनुसार रिट याचिका खारिज की जाती है। हालांकि इसे अन्य न्यायिक मामलों के लिए मिसाल नहीं माना जाएगा।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस ए एस बोपन्ना की पीठ ने उड़ीसा राज्य और अन्य बनाम प्रशांत कुमार स्वैन मामले में हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कार्यवाही को नए सिरे से शुरू करने के लिए उड़ीसा हाईकोर्ट वापस भेज दिया।

पीठ ने कहा, हाईकोर्ट ने मामले में चुनौती के आधार पर या प्रस्तुतियाँ पर कोई विचार नहीं किया। वास्तव में हाईकोर्ट के आदेश की अंतिम पंक्ति इंगित करती है कि निर्णय को एक मिसाल के रूप में नहीं माना जाएगा। यह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक मूल याचिका का निपटान करने का एक अनुचित तरीका है, क्योंकि हाईकोर्ट अपना दिमाग लगाने के लिए बाध्य है कि क्या ट्रिब्यूनल का निर्णय तथ्यों और कानून के अनुसार टिकाऊ है।

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सुप्रीम कोर्ट ने यह देखते हुए कि 2008 में ट्रिब्यूनल के समक्ष कार्यवाही शुरू की गई थी, आदेश की एक प्रति प्राप्त होने से तीन महीने की अवधि के भीतर मामले को तेजी से निपटाने के लिए हाईकोर्ट से अनुरोध किया। 

केस टाइटल – उड़ीसा राज्य और अन्य बनाम प्रशांत कुमार स्वैन

केस नंबर – सिविल अपील नंबर 154 2022

कोरम – जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना 

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