सत्य छुपाने वाले वादियों के मामले अदालत से किए जाएं बाहर: सुप्रीम कोर्ट

सत्य छुपाने वाले वादियों के मामले अदालत से किए जाएं बाहर: सुप्रीम कोर्ट

सत्य छुपाने वाले वादियों के मामले अदालत से किए जाएं बाहर: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो वादी (litigants) सत्य के प्रति सम्मान नहीं रखते और जो महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाते हैं, उनके मामलों को अदालत से “फेंक दिया जाना” चाहिए।

यह टिप्पणी एक चेक बाउंस मामले में आरोपी द्वारा दायर आपराधिक अपील की सुनवाई के दौरान की गई, जो कि न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (JMFC) के समक्ष लंबित थी।

न्यायालय का अवलोकन:

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भूयान की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा:
“यह स्थापित कानून है कि यदि कोई व्यक्ति अदालत में मामला दाखिल करते समय महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाता है या झूठा बयान देता है, तो वह न्याय पाने का हकदार नहीं हो सकता। जो वादी सत्य के प्रति सम्मान नहीं रखते और महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाते हैं, उनके मामलों को अदालत से बाहर कर दिया जाना चाहिए।”

मामले के संक्षिप्त तथ्य:

  • प्रतिवादी (उत्तरदाता) एक क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी थी, जिसने न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (JMFC) के समक्ष धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI Act) के तहत एक आपराधिक शिकायत दायर की।
  • आरोप था कि अपीलकर्ता (आरोपी) ने 2006 में ₹3,50,000 का ऋण लिया और सुरक्षा के रूप में दो चेक दिए।
  • पहले चेक को फरवरी 2007 में जमा किया गया, लेकिन वह बाउंस हो गया।
  • कानूनी नोटिस भेजे जाने के बाद 2007 में मामला दर्ज हुआ, लेकिन 2016 में भुगतान होने के बाद मामला वापस ले लिया गया और आरोपी को बरी कर दिया गया।
  • 2007 में आरोपी को ₹11,97,000 का दूसरा ऋण दिया गया, और जब 2016 में चेक प्रस्तुत किया गया तो वह भी बाउंस हो गया।
  • आरोपी ने कहा कि वह ऋण दस्तावेज़ मांग रही थी ताकि सही जवाब दे सके, लेकिन दस्तावेज नहीं दिए गए।
  • न्यायालय ने इसके बावजूद शिकायत स्वीकार कर ली, जिसके विरुद्ध अपीलकर्ता ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जो खारिज हो गई। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
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सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

  • महत्वपूर्ण दस्तावेज़ छुपाए गए: अदालत ने माना कि उत्तरदाता (क्रेडिट सोसाइटी) ने आरोपी द्वारा भेजे गए पत्रों को शिकायत में प्रस्तुत नहीं किया और न ही अपने बयान में उनके बारे में स्पष्ट किया।
  • अन्य कानूनी उपचार खुले रहेंगे: अदालत ने यह भी कहा कि प्रतिवादी को अन्य कानूनी रास्ते अपनाने की छूट है, लेकिन दंडात्मक कार्रवाई इस आधार पर नहीं चल सकती कि महत्वपूर्ण तथ्य छुपाए गए हैं।
  • शिकायत रद्द: सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और JMFC में लंबित शिकायत को निरस्त कर दिया।

मुख्य निष्कर्ष:

  1. सत्य को छुपाकर दायर की गई आपराधिक शिकायतें न्यायालय में नहीं टिक सकतीं।
  2. अभियुक्त को अपने बचाव के लिए दस्तावेजों तक पहुंच मिलनी चाहिए।
  3. यदि वादी महत्वपूर्ण तथ्य छुपाता है, तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग माना जाएगा।

वाद शीर्षक – रेखा शरद उशिर बनाम सप्तश्रृंगी महिला नगरी सहकारी पतसंस्था लिमिटेड

 

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