जस्टिस यशवंत वर्मा के घर आग लगने के बाद 15 करोड़ रुपये मिलने का दावा, सुप्रीम कोर्ट ने इन-हाउस जांच शुरू की
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को लेकर एक बड़ा विवाद सामने आया है। हाल ही में उनके आवास पर आग लगने की घटना के बाद, वहां कथित रूप से 15 करोड़ रुपये की नकदी बरामद होने का दावा किया जा रहा है। इस घटना की जानकारी दमकल विभाग ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी, जिसके बाद मामला भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना तक पहुंचा।
CJI की आपात बैठक और जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, CJI संजीव खन्ना ने गुरुवार शाम को एक आपात बैठक बुलाई। बैठक के बाद, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सरकार को एक सिफारिश भेजी, जिसमें जस्टिस यशवंत वर्मा को दिल्ली हाई कोर्ट से पुनः इलाहाबाद हाई कोर्ट भेजने की अनुशंसा की गई।
इसके अलावा, राज्यसभा में उनके खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, जो न्यायपालिका में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ इन-हाउस जांच के आदेश दिए
सुप्रीम कोर्ट ने इन-हाउस जांच प्रक्रिया शुरू की है, जिसके तहत तीन न्यायाधीशों की एक विशेष समिति गठित की जाएगी। यह समिति जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगाए गए आरोपों की विस्तृत जांच करेगी और उन पर आगे की कार्रवाई के लिए रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने इस पूरे प्रकरण पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
उन्होंने कहा:
- ट्रांसफर कोई समाधान नहीं है –
“अगर करप्शन के आधार पर यह फैसला लिया गया है, तो जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देना चाहिए। केवल इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर करना उचित समाधान नहीं है।” - जांच पूरी होने तक न्यायिक कार्य से अलग किया जाए –
“जब तक इन-हाउस जांच पूरी नहीं होती, उन्हें न्यायिक कार्यों से अलग रखा जाना चाहिए।” - न्यायपालिका में भ्रष्टाचार पर सख्त रुख –
“बॉम्बे हाई कोर्ट के तीन जजों को पहले भी भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते इस्तीफा देना पड़ा था। ऐसे मामलों में बार और बेंच को यह सुनिश्चित करना होगा कि न्यायपालिका में दोषी लोगों को बाहर किया जाए, ताकि जनता का न्याय व्यवस्था में भरोसा बना रहे।” - न्यायपालिका की पारदर्शिता पर बल –
“मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम, NJAC से बेहतर है, लेकिन इसमें पारदर्शिता की कमी है। जस्टिस वर्मा को एक अच्छा जज माना जाता था, लेकिन यह विवाद दर्शाता है कि न्यायिक प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता है।”
क्या होगा आगे?
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन न्यायाधीशों की समिति जस्टिस यशवंत वर्मा पर लगे आरोपों की जांच करेगी।
- अगर आरोप साबित होते हैं, तो जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देने के लिए कहा जा सकता है।
- राज्यसभा में महाभियोग की कार्यवाही उनके भविष्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।
- न्यायपालिका में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए नए कदम उठाए जा सकते हैं।
निष्कर्ष
यह मामला भारत की न्यायपालिका में पारदर्शिता और विश्वसनीयता की परीक्षा बन चुका है। यदि आरोप सही साबित होते हैं, तो यह न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम होगा, जिससे भविष्य में जजों की जवाबदेही और पारदर्शिता को लेकर नए मानक स्थापित किए जा सकते हैं। वही जानकारी हो की हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज एसएन शुक्ला के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति की सीबीआई जांच में कई और चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं परन्तु कोई भी कार्यवाही होती हुई नहीं दिखाई दे रही है ।
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