सुप्रीम कोर्ट Supreme Court ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान उत्तराखंड के नैनीताल जिला स्थिति हल्द्वानी में ध्वस्तीकरण Demolition के कार्य पर स्टे लगा दिया. इसी के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार और भारतीय रेलवे को नोटिस भी भेजा है. दरअसल हल्द्वानी Haldwani के बनभूलपुरा इलाके में रेलवे की जमीन पर कब्जा करने के मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट Uttarakhand High Court ने यहां से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था.
इस आदेश के खिलाफ कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए और सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई पर रोक लगा दी है.
उत्तराखंड हाईकोर्ट Uttarakhand High Court ने हल्द्वानी में रेलवे द्वारा अपनी बताई जा रही जमीन पर से 4000 परिवारों को हटाने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने अतिक्रमण को हटाने के लिए सुरक्षाबलों के इस्तेमाल की भी मंजूरी दी थी. हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमण रोधी इस कार्रवाई पर रोक लगा दी है.
यहां पर 4365 मकान है-
रेलवे का कहना है कि हल्द्वानी में उसकी 29 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण कर लिया गया है. इस जमीन पर 4,365 परिवार रहते हैं. इस जमीन पर कई धार्मिक स्थल हैं, स्कूल, प्राइवेट बिजनेस सेंटर और आम लोगों के घर भी हैं.
दरअसल मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण द्वारा इस मामले को सामने रखने के बाद बुधवार को इस मामले में त्वरित सुनवाई के लिए हामी भरी थी. एक तरफ रेलव का कहना है कि यह जमीन उसकी है और लोग यहां अतिक्रमण करके जबरन रह रहे हैं. दूसरी तरफ वहां रह रहे लोगों का कहना है कि उनके पास पक्के कानूनी दस्तावेज हैं, जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा है कि यह जमीन उनकी है.
अगली सुनवाई 7 फरवरी को-
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका ने माना कि यह एक मानवीय मामला है और इस संबंध में कोई समाधान निकाला जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट की बेंट ने कहा कि 50 हजार लोगों को रातोंरात कहीं से उखाड़कर नहीं फेंका जा सकता. इस संबंध में अब अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी.
ये है मामला-
20 दिसंबर 2022 को नैनीताल स्थित उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि हल्द्वानी में रेलवे की जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराया जाए. इसके लिए उन्होंने अधिकारियों को आदेश दिया कि अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई करने से कम से कम एक सप्ताह पहले वहां रह रहे लोगों को नोटिस दिया जाए.
इससे पहले 9 नवंबर 2016 को हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान रेलवे की जमीन से सभी अवैध अतिक्रमण को 10 हफ्ते के अंदर हटाने का आदेश दिया था. उस समय अदालत ने कहा था कि सभी अतिक्रमण को हटाने के बाद जमीन को रेलवे पब्लिक प्रेमिसिस के अंतर्गत लाया जाए.