सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू धार्मिक न्यास कानूनों की संवैधानिकता को हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया
केंद्र द्वारा सुनवाई का विरोध करने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने दक्षिणी राज्यों के हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती कानूनों को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायालयों में स्थानांतरित कर दिया
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पुडुचेरी के हिंदू धार्मिक न्यास कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को संबंधित उच्च न्यायालयों में स्थानांतरित कर दिया। यह याचिकाएं 2012 से लंबित थीं, जिनमें स्वामी दयानंद सरस्वती सहित अन्य याचिकाकर्ताओं ने धार्मिक न्यास कानूनों को संविधान के विरुद्ध बताया था।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों की इस दलील को स्वीकार किया कि इन मामलों की प्रारंभिक सुनवाई उच्च न्यायालयों में ही होनी चाहिए। अदालत ने याचिकाकर्ताओं को स्वतंत्रता दी कि वे अपनी शिकायतें उच्च न्यायालयों में रखें।
सुनवाई के दौरान हुई अहम टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील एस. गुरु कृष्णकुमार ने तर्क दिया कि धार्मिक न्यास कानूनों में कई असंवैधानिक प्रावधान शामिल हैं, जिन्हें सीधे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जानी चाहिए। इस पर न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, “प्रत्येक राज्य के कानून अलग-अलग हैं, इसलिए इन मामलों की पहले उच्च न्यायालयों में सुनवाई होनी चाहिए। इससे हमें हाई कोर्ट के फैसलों का लाभ भी मिलेगा।”
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी दलील दी कि “मंदिर सरकार के अधीन नहीं हो सकते। अगर धर्म का प्रशासन में कोई दखल नहीं है, तो प्रशासन को भी धर्म से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए।”
वरिष्ठ अधिवक्ता ज. साई दीपक ने कहा कि राज्य सरकारें मंदिरों का अधिग्रहण कर रही हैं, जो असंवैधानिक है। उन्होंने तर्क दिया कि यह मामला केवल कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पहलुओं से भी जुड़ा हुआ है।
अदालत का आदेश
अदालत ने निर्देश दिया कि उच्च न्यायालय इन याचिकाओं पर विचार करते समय सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक पहलुओं को ध्यान में रखें। अदालत ने यह भी कहा कि यदि आवश्यक हो तो उच्च न्यायालय किसी विशेषज्ञ समिति की मदद ले सकता है।
सुनवाई के बाद की चर्चाएँ
आदेश के बाद चर्चा के दौरान न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि “प्राचीन काल में संपूर्ण अर्थव्यवस्था मंदिरों के इर्द-गिर्द घूमती थी।” इस पर अधिवक्ता साई दीपक ने जवाब दिया कि “आज भी मंदिरों की आय का गलत उपयोग हो रहा है और यह प्रशासन के लिए राजस्व का स्रोत बन गया है।”
तमिलनाडु सरकार के वकील अमित आनंद तिवारी ने इस तर्क का विरोध किया और कहा कि “राज्य सरकार ने पुराने मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए 100 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।” इस पर साई दीपक ने पलटवार किया कि “पहले मंदिरों का सोना गलाया गया, फिर मरम्मत की गई।”
इस ऐतिहासिक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हिंदू धार्मिक न्यास कानूनों की संवैधानिकता पर अब विभिन्न उच्च न्यायालयों में नए सिरे से बहस होगी।
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