सुप्रीम कोर्ट का फैसला: बिना ठोस कारण बताए मेडिकल राय के आधार पर सेवा से बर्खास्तगी और विकलांगता पेंशन से इनकार अवैध

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: बिना ठोस कारण बताए मेडिकल राय के आधार पर सेवा से बर्खास्तगी और विकलांगता पेंशन से इनकार अवैध

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: बिना ठोस कारण बताए मेडिकल राय के आधार पर सेवा से बर्खास्तगी और विकलांगता पेंशन से इनकार अवैध

मामला: Rajumon T.M. बनाम भारत संघ व अन्य

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि सशस्त्र बलों के किसी सैनिक को मेडिकल बोर्ड की राय के आधार पर सेवा से बर्खास्त किया गया है, और उस राय में कारणों का उल्लेख नहीं है, तो ऐसी कार्रवाई वैध नहीं मानी जा सकती, विशेष रूप से जब इससे विकलांगता पेंशन जैसे लाभों से वंचित किया गया हो।

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह फैसला आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल (AFT) के एक आदेश के विरुद्ध दायर सिविल अपील में सुनाया। ट्रिब्यूनल ने अपीलकर्ता की विकलांगता पेंशन की मांग को खारिज कर दिया था।


🧾 मामले की पृष्ठभूमि:

  • अपीलकर्ता राजुमोन टी.एम., 1988 में भारतीय सेना में सिपाही के रूप में भर्ती हुए थे।
  • 9 वर्षों की सेवा के बाद उन्हें स्किज़ोफ्रेनिया के कारण सेवा से मेडिकल आधार पर बर्खास्त किया गया।
  • 30 मार्च, 1998 को कमांड हॉस्पिटल, चंडीमंदिर में इनवैलिडेटिंग मेडिकल बोर्ड ने यह राय दी थी कि यह बीमारी सेवा से संबंधित नहीं है और इसे संवैधानिक (constitutional) प्रकृति की बीमारी बताया गया।
  • उनकी विकलांगता को केवल 30% और दो वर्ष के लिए आंका गया।
  • इस आधार पर विकलांगता पेंशन से इनकार कर दिया गया और पहली अपील भी खारिज कर दी गई।

⚖️ सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियां:

  • “कारणों के बिना राय”: कोर्ट ने कहा कि मेडिकल बोर्ड ने केवल निष्कर्ष दिया, पर यह नहीं बताया कि कैसे और क्यों उस निष्कर्ष पर पहुंचे। निष्कर्ष और तर्क (reasons) में अंतर है।
  • “ऐसी राय के आधार पर सेवा समाप्ति अवैध”: जब राय के पीछे कारण न हों और वह राय ही बर्खास्तगी तथा लाभ से इनकार का आधार बने, तो वह निर्णय कानून की दृष्टि में अस्थायी और अवैध होगा।
  • “हितकारी कानून की व्याख्या उदार होनी चाहिए”: विकलांगता पेंशन का प्रावधान कल्याणकारी प्रकृति का है, अतः इसकी व्याख्या करते समय उदार दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
  • “संवैधानिक विकार कहने का आधार स्पष्ट नहीं”: कोर्ट ने कहा कि मेडिकल बोर्ड ने मात्र यह कहा कि बीमारी संवैधानिक विकार है, पर यह कैसे तय किया गया — इस पर कोई कारण नहीं दिया गया।
  • “अधिकारियों की कार्रवाई मनमानी”: सरकार यह सिद्ध नहीं कर सकी कि बिना किसी लाभ के सेवा समाप्त करना उचित था। अतः यह कार्रवाई मनमानी मानी गई।
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👩‍⚖️ वकील:

  • अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता थॉमस पी. जोसफ ने पक्ष रखा।
  • केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने पक्ष प्रस्तुत किया।

📌 निष्कर्ष और आदेश:

सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए AFT के निर्णय को रद्द कर दिया और यह स्पष्ट किया कि बिना कारण बताई गई मेडिकल राय पर आधारित निर्णय स्थायी नहीं हो सकते

A.V. Damodaran बनाम भारत संघ

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