सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश – सिविल प्रक्रिया संहिता की आदेश 41 नियम 31 का ‘पर्याप्त अनुपालन’ ही पर्याप्त, ‘मात्र तकनीकी उल्लंघन’ से अपील निर्णय अमान्य नहीं

सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश – सिविल प्रक्रिया संहिता की आदेश 41 नियम 31 का 'पर्याप्त अनुपालन' ही पर्याप्त, 'मात्र तकनीकी उल्लंघन' से अपील निर्णय अमान्य नहीं

 

सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश – सिविल प्रक्रिया संहिता की आदेश 41 नियम 31 का ‘पर्याप्त अनुपालन’ ही पर्याप्त, ‘मात्र तकनीकी उल्लंघन’ से अपील निर्णय अमान्य नहीं

मामला: नफीस अहमद एवं अन्य बनाम सोइनुद्दीन एवं अन्य (सिविल अपील सं. 5213/2025)

महत्त्वपूर्ण बिंदु संक्षेप में:

  • आदेश 41 नियम 31 का तकनीकी उल्लंघन अपने आप में निर्णय को शून्य नहीं बनाता।
  • यदि अपीलकर्ता ने कोई विशेष मुद्दा नहीं उठाया, तो अपीलीय न्यायालय को पृथक बिंदु निर्धारित करने की बाध्यता नहीं।
  • प्रक्रिया न्याय का साधन है, उसका कठोर पालन न करके भी न्यायसंगत निर्णय संभव है।
  • “Substantial compliance” ही पर्याप्त है — यही सुप्रीम कोर्ट की पुनः पुष्टि है।

सुप्रीम कोर्ट ने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की आदेश 41, नियम 31 की व्याख्या करते हुए यह महत्वपूर्ण निर्णय दिया है कि यदि अपीलीय न्यायालय द्वारा निर्धारण के बिंदु (points for determination) स्पष्ट रूप से नहीं तय किए गए हैं, तो केवल इसी आधार पर उसका निर्णय अमान्य नहीं हो जाता, यदि उस आदेश में नियम 31 का पर्याप्त अनुपालन (substantial compliance) हुआ है।

न्यायमूर्ति जे.बी. पारडीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने इस निर्णय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की उस व्याख्या से असहमति जताई जिसमें उसने अपीलीय न्यायालय के आदेश को केवल नियम 31 के तकनीकी उल्लंघन के आधार पर रद्द कर दिया था।


पृष्ठभूमि

मामला एक दीवानी वाद से संबंधित था, जिसमें अपीलीय न्यायालय द्वारा निर्णय सुनाया गया, किंतु उसमें आदेश 41 नियम 31 के तहत निर्धारित “विवाद के बिंदु” स्पष्ट रूप से नहीं लिखे गए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इसी आधार पर निर्णय को रद्द करते हुए कहा कि यह न्यायिक रूप से शून्य (void) है।

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सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि—

केवल इस कारण कि अपीलीय न्यायालय ने आदेश 41 नियम 31 का शाब्दिक पालन नहीं किया, निर्णय स्वतः शून्य नहीं हो जाएगा, जब तक कि उसमें पर्याप्त अनुपालन हुआ हो।

पीठ ने इस संदर्भ में 1963 के निर्णय ठाकुर सुखपाल सिंह बनाम ठाकुर कल्याण सिंह का हवाला देते हुए कहा:

यह अपीलकर्ता का कर्तव्य है कि वह यह प्रदर्शित करे कि अपील किया गया निर्णय क्यों त्रुटिपूर्ण है; और केवल ऐसा प्रदर्शित किए जाने के पश्चात ही अपीलीय न्यायालय उत्तरदाता को उत्तर देने का अवसर देता है।

इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि यदि अपीलकर्ता ने कोई विशेष विवाद का बिंदु नहीं उठाया, तो अपीलीय न्यायालय को उन बिंदुओं को अलग से निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं है। वह संक्षेप में यह कह सकता है कि कोई ऐसा तर्क नहीं प्रस्तुत किया गया जिससे मूल निर्णय त्रुटिपूर्ण सिद्ध हो।


न्यायिक विवेक और प्रक्रिया का उद्देश्य

पीठ ने 1955 के प्रसिद्ध निर्णय संग्राम सिंह बनाम इलेक्शन ट्रिब्यूनल, कोटा का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था:

प्रक्रिया केवल साधन है, न्याय को सुलभ बनाने का माध्यम; इसे इस प्रकार लचीलेपन के साथ व्याख्यायित करना चाहिए जिससे न्याय के उद्देश्य सिद्ध हों और पक्षकारों के साथ निष्पक्षता बनी रहे।


निष्कर्ष और आदेश

अंततः सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा:

नियम 31 को व्यवहारिक और न्यायपूर्ण दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। यह आवश्यक नहीं कि हर अपीलीय निर्णय में नियम 31 के सभी अंश शाब्दिक रूप से दोहराए जाएँ, जब तक कि कोई ठोस बिंदु विवाद में नहीं उठाया गया हो।

अतः, पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए अपील स्वीकार कर ली।

 

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