सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: पहली शादी जारी रहने के बावजूद पत्नी को मिला भरण-पोषण का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: पहली शादी जारी रहने के बावजूद पत्नी को मिला भरण-पोषण का अधिकार

यह निर्णय उन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण नज़ीर है, जो विवाह विवादों में फंसकर आर्थिक रूप से असहाय हो जाती हैं।

न्यायालय ने कहा की – यह मामला लिव-इन रिलेशनशिप का नहीं है

CrPC 125 | Maintenance Rights | Supreme Court Judgment

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महिला को भरण-पोषण का अधिकार दिया, भले ही उसकी पहली शादी कानूनी रूप से समाप्त नहीं हुई थी। यह फैसला तेलंगाना उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर आपराधिक अपील पर सुनवाई के दौरान दिया गया।

मामले का कानूनी प्रश्न

न्यायालय के समक्ष मुख्य प्रश्न यह था कि—
🔹 क्या कोई महिला अपने दूसरे पति से दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण प्राप्त कर सकती है, जबकि उसकी पहली शादी कानूनी रूप से जारी है?

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने इस मुद्दे पर अपना निर्णय दिया।

महत्वपूर्ण कानूनी संदर्भ

📌 बादशाह बनाम उर्मिला बादशाह गोडसे (2014) 1 SCC 188 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि कोई दूसरी पत्नी यह नहीं जानती थी कि उसके पति की पहली शादी जारी है, तो उसे भरण-पोषण का अधिकार प्राप्त होगा।
📌 द्वारिका प्रसाद सत्पथी बनाम विद्युत प्रवाह दीक्षित (1999) में यह माना गया कि भरण-पोषण मामलों में विवाह के प्रमाण की सख्त आवश्यकता नहीं होती, जैसा कि IPC की धारा 494 (द्विविवाह) के तहत अपराध साबित करने के लिए आवश्यक होता है।

मामले की पृष्ठभूमि

1999 में अपीलकर्ता की पहली शादी हुई और 2000 में एक पुत्र का जन्म हुआ।
2005 में संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) से लौटने के बाद पति-पत्नी अलग हो गए।
बाद में समझौता ज्ञापन (MoU) के माध्यम से विवाह भंग कर दिया गया।
अपीलकर्ता ने पड़ोसी (प्रतिवादी) से विवाह किया, जिसे बाद में परिवार न्यायालय ने अमान्य घोषित कर दिया।
2006 में पुनः विवाह हुआ और इसे विधिवत पंजीकृत किया गया।
2008 में बेटी का जन्म हुआ, लेकिन कुछ समय बाद दंपति में मतभेद उत्पन्न हो गए।
अपीलकर्ता ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A, 406, 506 और 420 तथा दहेज निषेध अधिनियम (DP Act) की धाराओं के तहत मामला दर्ज कराया।
CrPC 125 के तहत पारिवारिक न्यायालय ने भरण-पोषण का आदेश दिया।

ALSO READ -  दो वयस्कों के बीच सहमति से बने रिश्ते का टूटना, आपराधिक कार्यवाही शुरू करने का आधार नहीं बन सकता - सुप्रीम कोर्ट

तेलंगाना उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता की बेटी को भरण-पोषण देने का आदेश बरकरार रखा, लेकिन अपीलकर्ता को यह कहते हुए भरण-पोषण से वंचित कर दिया कि वह प्रतिवादी की कानूनी पत्नी नहीं मानी जा सकती, क्योंकि उसकी पहली शादी विधिवत रूप से समाप्त नहीं हुई थी।

इस आदेश के विरुद्ध अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां और निर्णय

📌 “यह मामला लिव-इन रिलेशनशिप का नहीं है”— न्यायालय ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय ने तथ्यात्मक निष्कर्ष दिया था कि अपीलकर्ता ने प्रतिवादी से विवाह किया था, और प्रतिवादी ने इस निष्कर्ष को चुनौती नहीं दी थी।

📌 “सिर्फ यह दावा करके भरण-पोषण से बचा नहीं जा सकता कि पहली शादी अभी जारी है”— न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी अपीलकर्ता को भरण-पोषण देने से बचने के लिए यह तर्क नहीं दे सकता कि उसका विवाह अमान्य था।

📌 “आर्थिक रूप से कमजोर पत्नी का अधिकार”— न्यायालय ने मोहम्मद अब्दुल समद बनाम तेलंगाना राज्य (2024) के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कुछ पति यह भूल जाते हैं कि वित्तीय रूप से निर्भर पत्नी न केवल भावनात्मक रूप से, बल्कि आर्थिक रूप से भी उन पर निर्भर होती है।

📌 “घरेलू संबंधों की व्यापक व्याख्या आवश्यक”— अदालत ने कहा कि घरेलू संबंधों की परिभाषा को व्यापक रूप से देखा जाना चाहिए ताकि न केवल मौजूदा बल्कि पूर्व घरेलू संबंध भी शामिल हो सकें।

📌 “सामाजिक कल्याण प्रावधानों की व्यापक व्याख्या”— न्यायालय ने माना कि भरण-पोषण एक सामाजिक सुरक्षा उपाय है और इसे व्यापक एवं लाभकारी रूप से लागू किया जाना चाहिए।

ALSO READ -  पकड़ौआ ब्याह रद्द करने के पटना हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, 7 फेरे के बिना अमान्य हुई थी शादी

📌 “पति को जिम्मेदारी से बचने नहीं दिया जा सकता”— न्यायालय ने टिप्पणी की कि प्रतिवादी ने अपीलकर्ता से विवाह किया, उसके साथ एक पारिवारिक जीवन बिताया, विशेषाधिकारों का आनंद लिया, लेकिन अब भरण-पोषण से बचना चाहता है।

अंतिम निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली।
परिवार न्यायालय के भरण-पोषण आदेश को बहाल कर दिया।
अपीलकर्ता को भरण-पोषण देने का आदेश दिया गया।

न्यायालय का संदेश: महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा

🔹 यह फैसला महिलाओं के आर्थिक अधिकारों को सुरक्षित करता है।
🔹 CrPC 125 का उद्देश्य महिलाओं और बच्चों को वित्तीय सुरक्षा देना है, न कि वैवाहिक स्थिति पर कानूनी बहस करना।
🔹 पति विवाह की वैधता पर सवाल उठाकर भरण-पोषण से बच नहीं सकता।

👉 यह निर्णय उन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण नज़ीर है, जो विवाह विवादों में फंसकर आर्थिक रूप से असहाय हो जाती हैं।

📌 वाद शीर्षक – ABC बनाम XYZ

Translate »