हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए कामबंद आंदोलन में शामिल सभी वकीलों को तत्काल काम पर लौटने का दिया निर्देश

मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय ने स्वत: संज्ञान (सुओ मोटो) लेते हुए काम बंद आंदोलन में शामिल सभी वकीलों को तत्काल काम पर लौटने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट का यह निर्देश शुक्रवार को आया। गौरतलब है कि अदालत के एक आदेश के विरोध में वकीलों ने बृहस्पतिवार से प्रदेश भर में तीन दिन तक काम बंद आंदोलन शुरू किया है। उक्त आदेश में हाईकोर्ट ने प्रदेश की निचली अदालतों को 25 पुराने मामलों को छांटने और तीन महीने में उनका निस्तारण करने के निर्देश दिए हैं।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवि मलिमथ और न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की बेंच ने कहा, ‘‘मध्य प्रदेश के वकीलों को निर्देश दिया जाता है कि वे अपने अदालती कामकाज में तुरंत शामिल हों। वे संबंधित अदालतों के समक्ष संबंधित मामलों में अपने मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करें।’’ अदालत ने ‘स्टेट बार काउंसिल मध्य प्रदेश’ (SBCMP) के अध्यक्ष के उस पत्र पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई की है जिसमें वकीलों से बृहस्पतिवार से अदालती कामकाज से दूर रहने को कहा गया था।

आदेश में कहा गया है कि यदि कोई वकील जानबूझकर अदालत में उपस्थित होने से बचता है, तो यह माना जाएगा कि उसने आदेश की अवहेलना की है और उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे, जिसमें अदालत की अवमानना अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू करना भी शामिल है। अदालत ने कहा है, अगर कोई वकील किसी सहकर्मी को अदालत के काम में आने से रोकता है, तो इसे इन निर्देशों की अवज्ञा माना जाएगा और उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे, जिसमें अदालत की अवमानना कानून के तहत कार्यवाही भी शामिल है।

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इसके अलावा, अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि न्यायिक अधिकारियों को एक रिपोर्ट पेश करनी होगी कि किस वकील ने जानबूझकर काम पर नहीं आने दिया है। अदालत ने कहा, “न्यायिक अधिकारी उन वकीलों के नामों का भी उल्लेख करेंगे जिन्होंने अन्य वकीलों को अदालत परिसर में प्रवेश करने या अदालत में अपने मामलों का संचालन करने से रोका है।” आदेश में कहा गया है कि ऐसे वकीलों के खिलाफ गंभीर कार्रवाई की जाएगी, जिसमें अदालत की अवमानना कानून के तहत कार्यवाही और वकालत से वंचित किया जाना शामिल है।

अदालत ने स्वत: संज्ञान Sue motto याचिका में 236 प्रतिवादी बनाए हैं जिसमें SBCMP के अध्यक्ष और जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर के हाईकोर्ट बार संघों के अध्यक्ष शामिल हैं। SBCMP के अनुसार, प्रदेश में एक लाख 101 हजार अधिवक्ता हैं और आंदोलन ने अदालती कार्यवाही को प्रभावित किया है और पूरे राज्य में वादियों के लिए समस्याएं पैदा की हैं। इससे पहले SBCMP के उपाध्यक्ष आर। के। सिंह सैनी कहा कि वकीलों को फिक्र है कि पुराने मामलों को निपटाने की जल्दबाजी में निष्पक्ष सुनवाई आड़े आ सकती आ सकती है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा पुराने मामलों की सुनवाई जमानत याचिका जैसे जरूरी मामलों को ठंडे बस्ते में डाल देगी।

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