मृतका से यह कहना कि अगर वह अपने प्रेमी से शादी किए बिना जीवित नहीं रह सकती तो वह जीवित न रहे, आत्महत्या के लिए उकसाने की श्रेणी में नहीं मन जायेगा – सुप्रीम कोर्ट

मृतका से यह कहना कि अगर वह अपने प्रेमी से शादी किए बिना जीवित नहीं रह सकती तो वह जीवित न रहे, आत्महत्या के लिए उकसाने की श्रेणी में नहीं मन जायेगा - सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मृतका से यह कहना कि अगर वह अपने प्रेमी से शादी किए बिना जीवित नहीं रह सकती तो वह जीवित न रहे, आत्महत्या के लिए उकसाने का दर्जा प्राप्त नहीं करेगा।

यह अपील अभियुक्त अपीलकर्ता-श्रीमती लक्ष्मी दास द्वारा कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन, सीआरआर संख्या 1560/2012, तथा निरस्तीकरण हेतु आवेदन, सीआरएएन संख्या 1946/2013 में पारित दिनांक 13.06.2014 के आदेश को चुनौती देते हुए प्रस्तुत की गई है। इस आदेश द्वारा कलकत्ता हाई कोर्ट ने केवल दिलीप दास/आरोपी संख्या 3 तथा सुब्रत दास/आरोपी संख्या 2 के विरुद्ध आरोपपत्र निरस्त कर दिया है, जबकि अपीलकर्ता/आरोपी संख्या 4 द्वारा प्रस्तुत आवेदन को खारिज कर दिया है।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा, “इसके अलावा, मृतका से यह कहना कि अगर वह अपने प्रेमी से शादी किए बिना जीवित नहीं रह सकती तो वह जीवित न रहे, जैसी टिप्पणी भी उकसाने का दर्जा प्राप्त नहीं करेगी। ऐसा सकारात्मक कार्य होना चाहिए जो ऐसा माहौल बनाए जहां मृतका को आईपीसी की धारा 306 के आरोप को बनाए रखने के लिए किनारे पर धकेल दिया जाए।”

तथ्य-

अभियोजन पक्ष के अनुसार, मृतका कथित तौर पर अपीलकर्ता के बेटे के साथ रिश्ते में थी, जो मामले में सह-आरोपी भी था। पीड़िता रेलवे स्टेशन के पास मृत पाई गई और उसकी मौत को “अप्राकृतिक मौत” के रूप में दर्ज किया गया। पोस्टमार्टम में ट्रेन के सामने कूदने के कारण लगी चोटों का पता चला। मृतका के चाचा ने आईपीसी की धारा 306 और 109 के साथ धारा 34 के तहत अपीलकर्ता सहित बेटे और उसके परिवार के सदस्यों पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाते हुए एक प्राथमिकी दर्ज कराई।

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गवाहों ने आरोप लगाया कि घटना से कुछ दिन पहले मृतका और अपीलकर्ता के बेटे के बीच कहासुनी हुई थी, जिसने उससे शादी करने से इनकार कर दिया था। अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप यह था कि उसने अपने बेटे की मृतका से शादी को अस्वीकार कर दिया और इसी कारण मृतका का अपमान किया।

न्यायालय का विश्लेषण-

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “भले ही अपीलकर्ता द्वारा अपनी शादी को अस्वीकार करने के आरोपों को सही माना जाए, लेकिन यह धारा 306 आईपीसी के तहत अपराध नहीं बनता है।”

न्यायालय ने कहा कि ऐसा सकारात्मक कार्य होना चाहिए जो ऐसा माहौल बनाए जहां मृतक को आईपीसी की धारा 306 के तहत आरोपों को बनाए रखने के लिए किनारे पर धकेला हुआ महसूस हो।

इसने टिप्पणी की “भले ही आरोपपत्र और गवाहों के बयानों सहित रिकॉर्ड पर मौजूद सभी सबूतों को सही माना जाए, लेकिन अपीलकर्ता के खिलाफ़ एक भी सबूत नहीं है। हम पाते हैं कि अपीलकर्ता के कृत्य धारा 306 आईपीसी के तहत अपराध बनाने के लिए बहुत दूर और अप्रत्यक्ष हैं। अपीलकर्ता के खिलाफ़ इस तरह का कोई आरोप नहीं है कि मृतक के पास आत्महत्या करने के दुर्भाग्यपूर्ण कृत्य के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था”।

इसके परिणामस्वरूप, न्यायालय ने आदेश दिया, “आक्षेपित आदेश आंशिक रूप से इस हद तक अलग रखा जाता है कि अपीलकर्ता के खिलाफ़ आरोपों को उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखा गया था। तदनुसार, विद्वान अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, सियालदह की फाइल पर लंबित सुप्रीम कोर्ट केस संख्या 5(8)10/2011 की कार्यवाही केवल अपीलकर्ता/श्रीमती लक्ष्मी दास के कारण रद्द की जाती है।

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परिणामस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने अपील को अनुमति दी।

वाद शीर्षक – लक्ष्मी दास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।

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