सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक नाबालिग की जमानत याचिका खारिज कर दी, यह देखते हुए कि चार समान आपराधिक मामलों में नामजद किशोर केवल अपनी उम्र के आधार पर कानून के शिकंजे से नहीं बच सकता।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने आरोपी को “असुधार्य अपराधी” (incorrigible offender) करार देते हुए कहा कि उसे अपने कृत्यों के परिणामों को समझना होगा। वह बार-बार लोगों से लूटपाट कर केवल नाबालिग होने का दावा करके छूट नहीं सकता।
गंभीर आरोपों के मद्देनज़र जमानत देने से इनकार
अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ लगे गंभीर आरोपों को ध्यान में रखते हुए कहा कि इस मामले में उसे नाबालिग मानकर अलग व्यवहार करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
इससे पहले, राजस्थान हाईकोर्ट ने जबरन वसूली (extortion) और आपराधिक धमकी (criminal intimidation) से जुड़े एक मामले में उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हालांकि, आरोपी तीन अन्य मामलों में पहले से जमानत पर था।
ट्रायल की धीमी गति पर सुप्रीम कोर्ट की नाराज़गी
शीर्ष अदालत ने यह भी गौर किया कि आरोपी पिछले 1.8 वर्षों से हिरासत में है और यदि किशोर न्यायालय उसे दोषी ठहराता है, तो उसे अधिकतम तीन साल की सजा हो सकती है।
पीठ ने यह भी संज्ञान लिया कि आरोपी के खिलाफ आरोप तय हो चुके हैं, लेकिन गवाहों को समन भेजे जाने के बावजूद वे ट्रायल कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि गवाहों की अनुपस्थिति कहीं न कहीं याचिकाकर्ता के त्वरित सुनवाई के अधिकार (right to a speedy trial) को प्रभावित कर सकती है।
चार महीने में मुकदमा निपटाने का निर्देश
शीर्ष अदालत ने किशोर न्यायालय के प्राधिकृत अधिकारी को निर्देश दिया कि वह सुनिश्चित करें कि अभियोजन पक्ष गवाहों को अदालत में पेश करे।
इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया कि चार महीने के भीतर मुकदमे की सुनवाई पूरी की जाए। यदि आवश्यक हो, तो मामले की सुनवाई प्रतिदिन (day-to-day basis) की जानी चाहिए।
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