जिला न्यायालय में नियुक्ति चाहने वाले व्यक्ति का चरित्र बेदाग होना चाहिए, जिससे न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास न डगमगाएगा – इलाहाबाद हाई कोर्ट

जिला अदालतों में नियुक्ति चाहने वाले व्यक्ति का चरित्र बेदाग होना चाहिए ऐसी महत्वपूर्ण टिप्पणी इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कि। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा की ऐसी सभी का जो नियुक्ति चाहता हो कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होना चाहिए। साफ-सुथरे रिकॉर्ड के बिना कोई भी व्यक्ति इस संस्था को नुकसान पहुंचा सकता है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने जिला अदालत, एटा के समूह ‘डी’ कर्मचारी की बर्खास्तगी बरकरार रखी है।

न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी तथा न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश फिरोजाबाद निवासी रामसेवक की विशेष अपील खारिज करते हुए दिया है।

बेदाग और आपराधिक रिकॉर्ड से मुक्त होना चाहिए न्यायिक कर्मियों का चरित्र-

खंडपीठ ने कहा, ‘जिला न्यायालय में नियुक्ति चाहने वाले व्यक्ति का चरित्र बेदाग होना चाहिए। साथ ही उसे ईमानदार होने के अलावा उसका अतीत साफ-सुथरा होना चाहिए। अगर किसी ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति की जाती है जिसकी ईमानदारी संदिग्ध है या उसका अतीत साफ-सुथरा नहीं है तो इससे संस्था को नुकसान हो सकता है।

अगर न्यायालय के रिकॉर्ड को गलत जगह रखा जाता है या उसके साथ छेड़छाड़ की जाती है तो न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास भी डगमगाएगा। इससे अंततः संस्था की प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान पहुंचेगा। अपीलार्थी ने 24 मई 2023 को जिला अदालत में कार्यभार ग्रहण किया था। उसकी बर्खास्तगी 28 जुलाई के आदेश से की गई। पुलिस सत्यापन में उसके खिलाफ केस दर्ज होने की जानकारी मिली थी। इसी आधार पर उसकी बर्खास्तगी की गई कि उसने पूर्व में अपने खिलाफ दर्ज मुकदमे की जानकारी छिपाई थी।

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बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती देने वाली अपील खारिज-

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि निलंबित कर्मचारी को निलंबन अवधि का भत्ता देना अनिवार्य है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने निलंबित कर्मचारी को दो सप्ताह में भुगतान तथा तीन माह में जांच पूरी करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने दिया है।

बनारस निवासी ईशपाल सिंह पावर कारपोरेशन में कार्यरत हैं। गबन के आरोप में उन्हें निलंबित कर दिया गया है। याची का कहना है कि उसे निर्वाह भत्ता नहीं दिया जा रहा है। उसका गबन से कोई लेना-देना नहीं है।

याची के वकील ने कहा कि जीवन निर्वाह भत्ता दिए बिना अनिश्चित काल तक कर्मचारी को निलंबित नहीं रखा जा सकता। पांच मार्च 2024 को उसे निलंबित कर जांच शुरू की गई थी। जीवन निर्वाह भत्ता का एक रुपया भी नहीं दिया गया।

कॉरपोरेशन के वकील ने कहा कि आम चुनावों के कारण जांच में देरी हुई। विभाग तीन महीने में जांच पूरी कर लेगा। दो सप्ताह के भीतर निर्वाह भत्ता का भुगतान कर दिया जाएगा। कोर्ट ने तथ्यों को अवलोकन करने के बाद हर हाल में विभागीय जांच तीन महीने में पूरी करने और निर्वाह भत्ता देने का आदेश दिया।

कोर्ट ने कहा, निर्देशों में से किसी एक का भी पालन न करने पर पांच मार्च 2024 का निलंबन आदेश ख़ारिज कर दिया जाएगा।

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