1996 में अग्निकांड पीड़ित ने पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट में पीआइएल फाइल हुई।
अग्निकांड पीडि़त विनोद बांसल की जुबानी… 15 जनवरी 2003 की तारीख कभी नहीं भूल सकता। जब चीफ जस्टिस विनोद राय ने कह दिया कि इलाज हो गया है बच्चों की फीस माफ हो गई है। इस केस में कुछ नहीं बचा है यह केस मैं खारिज कर रहा हूं।
वर्ष 1996 में पीड़ितों ने अग्निकांड पीड़ित संघ बनाकर पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दो पेशी हो चुकी थी। मैं इलाज करवाकर घर आया था। तीन पेशी पर आते-जाते बच्चे थक चुके थे। हमें पता था कि संघर्ष इतना आसान नहीं है। तीसरी पेशी पर हम गए, बच्चों को दो-तीन शैक्षणिक भ्रमण वाली साइट दिखाई तो नई ऊर्जा आई। फिर पेशी दर पेशी पीड़ितों की संख्या बढ़ती गई, हमारा हौंसला आसमान छूने लगा।
दो बार ऐसे मौके आए, जब लगा केस खत्म होने वाला है, तब विनोद बांसल ने आगे आकर की थी केस की पैरवी–
मुझे याद है 28 मई 2002, जब हाइकोर्ट में वकीलों की हड़ताल थी। इसका सीधा अर्थ था-वकील या मुद्दई दोनों में से कोई पेश नहीं हुआ तो केस खत्म। हड़ताल के कारण वकील पेश नहीं हुए। मुद्दई के तौर पर मैं पेश हुआ। हाजिरी लगाई तो जस्टिस ने तकलीफ पूछी। मैंने जस्टिस से कहा कि डीएवी स्कूल घायल बच्चों से हमदर्दी नहीं रख रहा। उसने फीस मांगनी शुरू कर दी है। इलाज शुरू करवाने की मांग की। जस्टिस ने पहले मुझे ताड़ा, बोले-यह कोर्ट है, यहां नेतागिरी न करो। फिर इलाज शुरू करने तथा डीएवी को फीस संबंधी आदेश जारी किए।
सुनवाई के दौरान प्रत्येक पीड़ित के साथ पेश हुआ था–
15 जनवरी 2003 की तारीख कभी नहीं भूल सकता। जब चीफ जस्टिस विनोद राय ने कह दिया कि इलाज हो गया है, बच्चों की फीस माफ हो गई है। इस केस में कुछ नहीं बचा है, यह केस मैं खारिज कर रहा हूं। हमारी वकील उस दिन बीमार थीं, जस्टिस को जेब से दवाइयां निकालकर दिखाई। हम चार-पांच लोग थे। 16 जनवरी 2003 को अगली तारीख थी। लिखित आर्गुमेंट के बाद अगली तारीख 17 जनवरी दे दी। इस दौरान डबवाली से काफी पीड़ित हाईकोर्ट पहुंच गए। चीफ जस्टिस ने अग्निकांड पीड़ितों की भीड़ देखकर कहा कि इनको किसने बुलाया है। पीड़ितों ने जवाब दिया कि हम यहां पेशी पर आए हैं। अदालत 15 मिनट स्थगित कर दी गई। दोबारा लंच तक स्थगित हो गई। लंच के बाद जस्टिस बोले आपके केस की सुनवाई दूसरी अदालत में होगी। हम जाने लगे तो चीफ जस्टिस ने नुमाइंदा पीछे भेजा। वापस बुलाया, बोले-आपका केस मैं ही सुनूंगा। करीब साढ़े तीन घंटे तक अदालत में बहस चली। जस्टिस बोले लंबी तारीख नहीं दूंगा, 23 जनवरी को मुआवजे के निर्धारण के लिए आयोग गठन के निर्देश दिए। यह कार्य इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश टीपी गर्ग को सौंपा गया था। जून 2003 में आयोग ने कार्य शुरू कर दिया था। आयोग ने व्यक्तिगत रिपोर्ट सुनी। 442 मृतकों में से 403 ने केस दायर किए थे जबकि 88 घायल थे। कुल 493 मामलों की सुनवाई हुई। मैं सुनवाई के दौरान प्रत्येक पीड़ित के साथ पेश हुआ था।
अदालत के आदेश–
1996 : अग्निकांड पीड़ित ने पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट में पीआइएल फाइल हुई। 1996 : हाइकोर्ट ने घायलों का इलाज करवाने के आदेश दिए। 28-05-2002 : डीएवी संस्थान को बच्चों की फीस वापस करने के आदेश दिए। 28-01-2003 : मुआवजा निर्धारण के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर जज टीपी गर्ग पर आधारित आयोग बनाया गया। पीड़ितों के इलाज के लिए उत्तर भारत के 10 मेडिकल संस्थान पैनल में शामिल किए गए। मई 2003 : आयोग ने क्लेम पटीशन के लिए एडवरटाइज जारी की। करीब साढ़े छह साल में 405 डेथ तथा 88 घायलों के केस सुने। मार्च 2009 : टीपी गर्ग आयोग ने रिपोर्ट हाईकोर्ट में सबमिट की। 9-11-2009 : पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया। 15-03-2010 : हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ डीएवी संस्थान सुप्रीम कोर्ट में चला गया। पटीशन पर सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर डीएवी ने 10 करोड़ जमा करवाए। 23-01-2013 : सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट का फैसला बरकरार रखते हुए डीएवी की पटीशन रद कर दी। मार्च 2016 : डीएवी ने क्लेरिफिकेशन के लिए पुन: सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। शीर्ष अदालत ने छह प्रतिशत ब्याज दर से चार माह में पूरी मुआवजा राशि जमा करवाने के आदेश दिए थे। 11 दिसंबर 2017 : डबवाली अदालत ने अग्निकाड पीडि़तों की याचिका पर सुनवाई करते हुए डीएवी को मुआवजा के तौर पर 22 दिसंबर 2017 तक 3.32 करोड़ रुपये जमा करवाने के आदेश दिए थे। 2018 : डीएवी ने बकाया राशि का ड्राफ्ट डबवाली अदालत में जमा करवा दिया। जिसके बाद 22 वर्ष से चली आ रही मुआवजे की लंबी लड़ाई समाप्त हो गई।